SEBA Class 9 Hindi (MIL) Solution| Chapter-7 | नमक का दारोगा सूची में प्रत्येक अध्याय का उत्तर प्रदान किया गया है ताकि आप आसानी से विभिन्न अध्याय एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 अंबर भाग-2 में खुल सकें और एक की आवश्यकता का चयन कर सकें। इसके अलावा आप एनसीईआरटी (CBSE) पुस्तक दिशानिर्देशों के अनुसार विशेषज्ञ शिक्षकों द्वारा इस खंड में NCERT पुस्तक ऑनलाइन पढ़ सकते हैं। ये समाधान NCERT हिंदी (MIL) समाधान का हिस्सा हैं। यहां हमने कक्षा 10 NCERT अंबर भाग -2 पाठ्य पुस्तक समाधान अंबर भाग -2 के Class 10 Ambar Bhag 2 Ch 7 Questions Answers | नमक का दारोगा लिए दिए हैं आप यहां इनका अभ्यास कर सकते हैं।
Class 10 Ambar Bhag 2 Ch 7 Questions Answers | नमक का दारोगा
Class 10 Ambar Bhag 2 Ch 7 Questions Answers | नमक का दारोगा ये उत्तर अपने-अपने क्षेत्र के अनुभवी प्रोफेसरों द्वारा सावधानीपूर्वक तैयार किए जाते हैं। इसका उद्देश्य छात्रों को विषय की उचित समझ देना और उनके कौशल और अभिव्यक्ति में सुधार करना है। यदि ये उत्तर उन उद्देश्यों से मेल खाते हैं जिनके लिए वे बनाए गए थे, तो हम अपने प्रयासों को तदनुसार पुरस्कृत करने पर विचार करेंगे। Class 10 Ambar Bhag 2 ch 7 Questions Answers इन उत्तरों को और बेहतर बनाने के सुझावों का हमेशा स्वागत है।
नमक का दारोगा
पाठ – 7
लेखक-परिचय
हिन्दी साहित्य – जगत में ‘महान कहानीकार’, ‘कलम का सिपाही’ और ‘उपन्यास सम्राट’ जैसी उपाधियों से विभूषित मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई सन् 1880 को बनारस (काशी) शहर से चार मील दूर लमही नामक गाँव में हुआ था। इनका असली (वास्तविक) नाम धनपत राय था। इनके पिता का नाम मुंशी अजायब राय तथा माता का नाम आनंदी देवी था। अजायब लाल डाकखाने में किरानी थे। उर्दू भाषा में पहले आप ‘नवाब राय’ के नाम से लिखते थे। इस भाषा (उर्दू) में प्रकाशित आपका पहला कहानी संग्रह ‘सोजे वतन’ जब अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया तब आपने अपने नाम (प्रेमचंद) से हिन्दी भाषा में लिखना प्रारंभ किया। आपने अपने कर्मजीवन की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की तथा शिक्षा विभाग में डिप्टी इन्सपेक्टर के प्रतिष्ठित पद तक पहुँचे। 8 अक्टूबर सन् 1936 को आपका स्वर्गवास हो गया।
प्रेमचंद महान् साहित्यकार होने के बावजूद जीवन भर आर्थिक कठिनाइयों से जूझते रहे। परन्तु आर्थिक कठिनाइयों को झेलते हुए भी वे साहित्य रचना में लगे रहे। लेकिन नौकरी में बार-बार होने वाले स्थानान्तरण तथा सामाजिक एवं पारिवारिक समस्याओं के कारण उनकी साहित्य साधना में बाधा पड़ने लगी। इसलिए वे सब कुछ छोड़कर अपनी साहित्य साधना में लीन हो गए। प्रेमचंद अपने युग के महानायक थे। उन्होंने उपन्यास तथा कहानियों के अलावा निबन्ध और नाटक पर भी अपनी अमिट छाप छोड़ी है। आपने लगभग तीन सौ कहानियाँ और चौदह उपन्यासों की रचना की है। संसार के महान लेखकों में आपकी गिनती होती है। आपकी सभी कहानियों का संकलन ‘मानसरोवर’ के आठ भागों में समाहित है। आपकी सर्वश्रेष्ठ एवं चर्चित कहानियों में ‘नमक का दारोगा’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘ठाकुर का कुआँ’, ‘परीक्षा’, ‘बूढ़ी काकी’, ‘पूस की रात’, ‘कफन’, ‘सवा सेर गेहूँ’, ‘ईदगाह’ और ‘दो बैलों की कथा’ तथा प्रसिद्ध उपन्यासों में ‘गबन’, ‘गोदान’, ‘निर्मला’, ‘सेवा सदन’, ‘प्रेमाश्रम’, ‘कर्मभूमि’, ‘रंगभूमि’, ‘कायाकल्प’, ‘प्रतीक्षा’ और ‘मंगलसूत्र’ (अपूर्ण) का नाम आता है। इसके अलावा आपने कई पत्रों जैसे ‘हंस’, ‘मर्यादा’, ‘जागरण’ आदि का संपादन भी किया।
कहानी के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने का श्रेय प्रेमचंद को जाता है। उनकी कहानियों में ग्रामीण जीवन का जैसा जीता-जागता चित्र दिखाई देता है, वैसा अन्य लेखकों की कहानियों में नहीं दिखाई देता। उनकी भाषा-शैली अत्यन्त सरल, सुबोध तथा पात्रों के अनुकूल है, जिसे प्रत्येक व्यक्ति आसानी से समझ सकता है। उनकी कहानियों का उद्देश्य (विशेषता) अंधविश्वास, अशिक्षा, छुआछूत, ऊँच-नीच का भेदभाव, नारी अत्याचार आदि समस्याओं पर कठोर प्रहार कर समाज सुधार करना है। उनकी कहानियों की रोचकता का कारण उर्दू शब्द- बाहुल्य तथा मुहावरों एवं कहावतों का सुंदर प्रयोग है।
‘नमक का दारोगा’ शीर्षक कहानी मानसरोवर में संगृहीत सर्वश्रेष्ठ कहानियों में से एक हैं। धन पर धर्म की विजय से प्रेरित इस कहानी में एक तरफ पंडित अलोपीदीन हैं जो धन के प्रतीक हैं। पैसे के बल पर वे बड़े-बड़े अधिकारियों को अपने इशारों पर नचाते हैं और अपने हर अच्छे-बुरे कार्यों को उनकी सहायता से अंजाम तक पहुँचाते हैं। दूसरी तरफ धर्म के प्रतीक मुंशी वंशीधर जैसे पुलिस अधिकारी हैं जो अपनी कर्तव्य निष्ठा और ईमानदारी के पथ पर चट्टान की भाँति अडिग हैं। जब दोनों का आमना-सामना होता है तब धन के प्रतीक पंडित अलोपीदीन बुरी तरह पराजित होकर उनके समक्ष नतमस्तक हो जाते हैं। यह कहानी रोचक एवं शिक्षाप्रद होने के साथ-साथ वर्तमान समाज के लिए प्रासंगिक भी है।
लेखक-संबंधी प्रश्न एवं उत्तर
1. मुंशी प्रेमचंद का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर: मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई सन् 1880 को बनारस (काशी) शहर से चार मील दूर लमही नामक गाँव में हुआ था।
2. प्रेमचंद का वास्तविक नाम क्या था ?
उत्तर: प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय था।
3. प्रेमचंद के माता-पिता का नाम क्या था ?
उत्तर: प्रेमचंद के पिता का नाम अजायब राय तथा माता का नाम आनंदी देवी था।
4. प्रेमचंद के पिता अजायब राय क्या करते थे ?
उत्तर: प्रेमचंद के पिता अजायब लाल डाकखाने में किरानी थे।
5. प्रेमचंद उर्दू भाषा में किस नाम से लिखते थे ?
उत्तर: प्रेमचंद उर्दू भाषा में ‘नवाब राय’ नाम से लिखते थे।
6. उर्दू भाषा में प्रकाशित प्रेमचंद के पहले कहानी संग्रह का नाम क्या है ?
उत्तर: उर्दू भाषा में प्रकाशित प्रेमचंद के पहले कहानी संग्रह का नाम ‘सोजे वतन’ है।
7. प्रेमचंद ने कब अपने नाम से हिन्दी भाषा में लिखना आरंभ किया ?
उत्तर: उर्दू भाषा में प्रकाशित प्रेमचंद (नवाब राय) का पहला कहानी संग्रह ‘सोजे ‘वतन’ जब अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया तब उन्होंने अपने नाम (प्रेमचंद) से हिन्दी भाषा में लिखना आरंभ किया।
8. आजीविका के लिए प्रेमचंद ने कौन-सा पेशा अपनाया ?
उत्तर: आजीविका के लिए प्रेमचंद ने शिक्षक के पेशे को अपनाया।
9. बाद में प्रेमचंद शिक्षा विभाग में किस प्रतिष्ठित पद पर आसीन हुए ?
उत्तर: बाद में प्रेमचंद शिक्षा-विभाग में डिप्टी इन्सपेक्टर के प्रतिष्ठित पद पर आसीन हुए।
10. प्रेमचंद का देहांत कब हुआ था ?
उत्तर: प्रेमचंद का देहांत 8 अक्टूबर सन् 1936 को हुआ था।
11. प्रेमचंद जीवन भर किस कठिनाई (तंगी) से जूझते रहे?
उत्तर: प्रेमचंद जीवन भर आर्थिक कठिनाई (तंगी से जूझते रहे।
12. प्रेमचंद ने लगभग कितनी कहानियाँ और कितने उपन्यासों की रचना की है ?
उत्तर: प्रेमचंद ने लगभग तीन सौ कहानियाँ और चौदह उपन्यासों की रचना की है।
13. प्रेमचंद की गिनती किस प्रकार के लेखकों में होती है ?
उत्तर: प्रेमचंद की गिनती संसार के महान लेखकों में होती है।
14. हिन्दी साहित्य जगत में प्रेमचंद को किन-किन उपाधियों से विभूषित किया गया है ?
उत्तर: हिन्दी साहित्य जगत में प्रेमचंद को ‘उपन्यास सम्राट’, ‘महान कहानीकार’ और ‘कलम का सिपाही’ जैसी उपाधियों से विभूषित किया गया है।
15. प्रेमचंद की सभी कहानियाँ कहाँ संकलित हैं ?
उत्तर: प्रेमचंद की सभी कहानियाँ’ मानसरोवर’ के आठ भागों में संकलित हैं।
16. प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ एवं चर्चित कहानियाँ कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर: प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ एवं चर्चित कहानियाँ क्रमशः ‘नमक का दारोगा’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘ठाकुर का कुआँ’, ‘परीक्षा’, ‘बूढ़ी काकी’, ‘पूस की रात’, ‘कफन’, ‘सवा सेर गेहूँ’, ‘ईदगाह’, और ‘दो बैलों की कथा’ आदि हैं।
17. प्रेमचंद के प्रसिद्ध उपन्यासों में कौन-कौन से नाम आते हैं ?
उत्तर: प्रेमचंद के प्रसिद्ध उपन्यासों में क्रमशः ‘गबन’, ‘गोदान’, ‘निर्मला’, ‘सेवा सदन’, ‘प्रेमाश्रम’, ‘कर्मभूमि’, ‘रंगभूमि’, ‘कायाकल्प’, ‘प्रतीक्षा’ और ‘मंगलसूत्र’ (अपूर्ण) आदि के नाम आते हैं।
18. कहानी और उपन्यासों के अतिरिक्त प्रेमचंद ने किन-किन पत्रों का सम्पादन किया था ?
उत्तर: कहानी और उपन्यासों के अतिरिक्त प्रेमचंद ने ‘हंस’, ‘मर्यादा’ और ‘जागरण’ आदि पत्रों का सम्पादन किया था।
19. कहानी के क्षेत्र में क्रान्ति का श्रेय किस लेखक को जाता है ?
उत्तर: कहानी के क्षेत्र में क्रान्ति का श्रेय मुंशी प्रेमचंद को जाता है।
20. प्रेमचंद की कहानियों में कैसा जीवन चित्र दिखाई देता है ?
उत्तर: प्रेमचंद की कहानियों में ग्रामीण जीवन का जीवंत चित्र दिखाई देता है।
21. प्रेमचंद की भाषा-शैली कैसी है तथा इसकी विशेषता क्या है ?
उत्तर: प्रेमचंद की भाषा-शैली अत्यन्त सरल एवं सहज है तथा इसकी विशेषता है कि इसे कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी आसानी से समझ लेता है।
22. प्रेमचंद की कहानियों में क्या निहित रहता है ?
उत्तर: प्रेमचंद की कहानियों में कोई न कोई महान संदेश निहित रहता है।
23. प्रेमचंद की कहानियों की विशेषता (उद्देश्य) क्या है ?
उत्तर: प्रेमचंद की कहानियों की विशेषता (उद्देश्य) अंधविश्वास, अशिक्षा, छुआछूत, ऊँच-नीच का भेदभाव, नारी अत्याचार आदि समस्याओं पर कठोर प्रहार कर समाज सुधार करना है।
24. प्रेमचंद की कहानियों की रोचकता किस कारण बढ़ गई है?
उत्तर: प्रेमचंद की कहानियों की रोचकता उर्दू शब्द- बाहुल्य तथा मुहावरों एवं कहावतों के सुन्दर प्रयोग से बढ़ गई है।
25. ‘नमक का दारोगा’ शीर्षक कहानी का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर: ‘नमक का दारोगा’ शीर्षक कहानी का मुख्य उद्देश्य धन पर धर्म की विजय दिखाना है।
सारांश
मुंशी परमचंद द्वारा लिखित कहानी “नमक का दरोगा” उस समय का उल्लेख करती है जब देश में नमक के उत्पादन और बिक्री पर सभी प्रकार के कर (शुल्क) लगाए जाते थे। इसके कारण उच्च स्तर का भ्रष्टाचार हुआ और नमक क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों को अन्य प्रमुख क्षेत्रों की तुलना में बेहतर वेतन दिया गया। मुख्य पात्र मुंशी वंशीदार एक गरीब और कर्जदार परिवार का एकमात्र कमाने वाला है। सौभाग्य से, उन्हें नमक विभाग में एक निरीक्षक के रूप में नियुक्त किया गया है। हालाँकि उनके पास अतिरिक्त पैसा कमाने के कई अवसर थे और उन्हें अपने बुजुर्ग पिता से बहुत सलाह मिलती थी, फिर भी वे अपने धर्म से विचलित नहीं होना चाहते थे। एक दिन अचानक उन्हें एक बड़े नमक तस्करी अभियान के बारे में पता चलता है और अंततः वे वहां पहुंच जाते हैं। इस तस्करी के पीछे सबसे बड़े जमींदार पंडित अलुपीदीन हैं। जब पंडित अलुपीदीन को वहां बुलाया गया तो वे बड़े बेफिक्र होकर आये क्योंकि वे जानते थे कि किसी भी निरीक्षण में पैसों की रिश्वत दी जा सकती है।
उन्होंने मुंशीजी को एक हजार रुपये की रिश्वत की पेशकश भी की, लेकिन वंशीदार के सचिव तैयार नहीं हुए और उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दिया। यह रकम 40,000 हो जाने के बाद भी वंसीदार का विश्वास अपरिवर्तित रहा. वानसिद्दर की समस्याएँ तब समाप्त हो जाती हैं जब पंडित जी स्वयं पूरे शहर में बदनाम और अपमानित होते हैं, पैसे के बदले में अदालत से सम्मानजनक बरी हो जाते हैं और अपने प्रभाव के कारण मुंशी जी को बर्खास्त भी कर देते हैं। . आर्थिक तंगी के अलावा उन्हें अपने परिवार के गुस्से का भी सामना करना पड़ता है। तभी अचानक कुछ अप्रत्याशित घटित होता है. पंडित अलुपीदीन मुंशी वंशीदार के घर जाते हैं और उनकी ईमानदारी से इतने प्रभावित होते हैं कि उन्हें वाणिज्य और वित्त के महाप्रबंधक के रूप में नियुक्त करते हैं और उन्हें उच्च वेतन और बहुत सारी विलासिता देते हैं।
पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर
बोध एवं विचार
1. सही विकल्प का चयन कीजिए:
( क ) पढ़ाई समाप्त करने के बाद मुंशी वंशीधर किस पद पर नियुक्त हुए ?
(i) नमक का दारोगा।
(ii) कांस्टेबल
(iii) मैनेजर
(iv) न्यायाधीश
उत्तर: (i) नमक का दारोगा।
(ख) पंडित अलोपीदीन थे दातागंज के प्रतिष्ठित―
(i) व्यक्ति
(ii) ज़मींदार
(iii) दारोगा
(iv) न्यायाधीश
उत्तर: (ii) ज़मींदार।
(ग) अदालत में पंडित अलोपीदीन को देखकर लोग इसलिए विस्मित नहीं थे कि उन्होंने क्यों यह कार्य किया बल्कि इसलिए कि –
(i) अलोपीदीन ने भारी अपराध किया था।
(ii) उन्होंने मुंशी वंशीधर को घूस देने की कोशिश की थी।
(iii) वह कानून के पंजे में कैसे आए।
(iv) उपर्युक्त सभी कथन सही हैं।
उत्तर: (ii) वह कानून के पंजे में कैसे आए।
(घ) कहानी के अंत में पंडित अलोपीदीन ने मुंशी वंशीधर को अपनी सारी जायदाद का नियुक्त किया –
(i) मालिक
(ii) स्थायी मैनेजर
(ii) वारिस
(iv) हिस्सेदार
उत्तर: (ii) स्थायी मैनेजर।
2. अत्यंत संक्षेप में उत्तर दीजिए:
(क) लोग नमक का चोरी-छिपे व्यापार क्यों करने लगे ?
उत्तर: लोग नमक का चोरी-छिपे व्यापार इसलिए करने लगे क्योंकि देश की तत्कालीन अंग्रेज सरकार के नमक विभाग ने ईश्वरप्रदत्त नमक के मुक्त व्यवहार पर प्रतिबंध लगा दिया था।
(ख) पहले किस प्रकार की शिक्षा पाकर लोग सर्वोच्च पदों पर नियुक्त हो जाया करते थे ?
उत्तर: पहले न्याय और विद्वत्ता की लंबी-चौड़ी उपाधियाँ पाकर लोग सर्वोच्च पदों पर नियुक्त हो जाया करते थे।
(ग) किन गुणों के कारण मुंशी वंशीधर ने अफ़सरों को मोहित कर लिया था ?
उत्तर: अपनी कार्यकुशलता और उत्तम आचार के कारण मुंशी वंशीधर ने अफ़सरों को मोहित कर लिया था।
(घ) नमक के दफ़्तर से मील भर पूर्व कौन-सी नदी बहती थी ?
उत्तरः नमक के दफ्तर से मील भर पूर्व यमुना नदी बहती थी।
(ङ) वंशीधर ने पंडित अलोपीदीन को हिरासत में क्यों लिया ?
उत्तर: वंशीधर ने पंडित अलोपीदीन को हिरासत में इसलिए लिया क्योंकि उन्होंने यमुना नदी के तट पर कुछ आदमियों को पंडित अलोपीदीन की गाड़ियों के साथ व्यापार के लिए अवैध रूप से नमक ले जाते हुए रंगे हाथों पकड़ा था।
3. संक्षिप्त उत्तर दीजिए:
(क) जब मुंशी वंशीधर रोजगार की तलाश में निकले तो उनके पिता जी ने क्या उपदेश दिया ?
उत्तर: जब मुंशी वंशीधर रोजगार की तलाश में निकले तो उनके पिता जी ने नौकरी में केवल मासिक आय वाले प्रतिष्ठित पद के बजाय ऊपरी आय वाले पद पर ध्यान देने का उपदेश दिया। उन्होंने अपना आशय उपमा के माध्यम से स्पष्ट करते हुए समझाया कि “बेटा! मासिक आय तो पूर्णवासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। “
(ख) गिरफ्तारी से बचने के लिए पं. अलोपीदीन ने वंशीधर को किस प्रकार रिश्वत देने की पेशकश की ?
उत्तर: पंडित अलोपीदीन को पैसे की ताकत पर अखण्ड विश्वास था। वे पैसे के बल पर बड़े-बड़े अधिकारियों को अपने इशारों पर नचाते थे। इसी विश्वास के बल पर उन्होंने मुंशी वंशीधर को भी खरीदना चाहा। उन्होंने पहले एक हजार रुपये देने की पेशकश की। फिर पाँच, दस, पंद्रह और बीस हजार तक पहुँच गए। लेकिन वंशीधर पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। तब पंडित अलोपीदीन के विश्वास को पहली बार धक्का लगा और उन्होंने अत्यंत दीन भाव से इस मामले को निपटाने हेतु एक बार फिर कोशिश की। बीस से पच्चीस, पच्चीस से तीस और अन्त में चालीस हजार तक देने की लालच दी परन्तु वंशीधर अपने स्थान पर पर्वत की तरह अविचलित खड़े रहे।
(ग) यमुना तट पर मुंशी वंशीधर और पं. अलोपीदीन के बीच हुई बातचीत का वर्णन कीजिए।
उत्तर: यमुना के तट पर मुंशी वंशीधर ने पंडित अलोपीदीन की नमक की बोरियों से भरी हुई गाड़ियाँ रोकीं और उन्हें बुलाया। तभी पंडित अलोपीदीन रईसों की तरह कम्बल ओढ़े और मुँह में पान चबाते हुए उनके पास आये। उन्होंने कहा, “बाबू जी का आशीर्वाद” और बहुत विनम्रता से गाड़ियाँ रोकने का कारण पूछा। वंशीधर ने बेरुखी से इसका कारण अपने ऊँचे पद के कारण सरकारी फरमान बताया। तब पंडित अलोपीदीन ने अपना स्नेह दिखाया, इसे पारिवारिक मामला बताया और अन्य अधिकारियों की तरह उपहार के रूप में रिश्वत की पेशकश की। परन्तु मुंशी वंशीधर पर इन बातों का कोई प्रभाव न पड़ा और उन्होंने कठोर शब्दों में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा, “हम उन बदमाशों में से नहीं हैं जो कौड़ियों के बदले अपना ईमान बेचते हैं।”
जब पंडित अलोपीदीन को किसी भी तरह से अपनी दाल गलती हुई नहीं दिखाई दी तो बहुत ही दीन-भाव से अपनी इज्जत का वास्ता देकर स्वयं को हिरासत में नहीं लेने का आग्रह किया। किन्तु वंशीधर ने कठोर स्वर में ऐसी बातें सुनने से मना कर दिया।
परन्तु अभी भी पंडित अलोपीदीन को अपनी धन की शक्ति पर पूरा विश्वास था। जब किसी भी तरह की बातों से काम नहीं बना तो रिश्वत का सहारा लेते हुए एक हजार रुपये की पेशकश की। इस पर वंशीधर ने दृढ़ता से कहा- ‘एक हजार नहीं, एक लाख भी मुझे सच्चे मार्ग से नहीं हटा सकते।’ इसके बाद हर आग्रह के साथ रिश्वत की राशि बढ़ती चली गई और बीस हजार तक पहुँच गई। लेकिन वंशीधर का जवाब पूर्ववत् था ।
अब पंडित अलोपीदीन निराश हो चले थे और अत्यंत दीनता से ईश्वर का वास्ता देकर दया की भीख माँगते हुए पच्चीस हजार पर निपटारा करने की बात कही। तो मुंशी वंशीधर ने इसे असंभव कहकर उनकी प्रार्थना को निर्दयतापूर्वक ठुकरा दिया। एक बार फिर पंडित जी ने हिम्मत दिखाई और तीस हजार तक पहुँचे। परन्तु वंशीधर ने कहा कि किसी भी तरह संभव नहीं है। अन्त में पंडित अलोपीदीन ने अपनी सारी शक्ति बटोर कर पूछा ‘क्या चालीस हजार भी ‘नहीं?’ तो वंशीधर ने स्पष्ट शब्दों में कहा–’चालीस हजार नहीं, चालीस लाख पर भी असंभव है।’
(घ) डिप्टी मजिस्ट्रेट ने क्या फैसला सुनाया ?
उत्तर: डिप्टी मजिस्ट्रेट ने यह फैसला सुनाया कि पंडित अलोपीदीन के विरुद्ध दिए गए प्रमाण निर्मूल और भ्रमात्मक हैं। वे एक बड़े व्यापारी हैं और मामूली से लाभ के लिए ऐसा काम नहीं करेंगे। उन्होंने खेद प्रकट करते हुए यह भी कहा कि दारोगा मुंशी वंशीधर की विचारहीनता के कारण पंडित अलोपीदीन जैसे • भले-मानुस को कष्ट उठाना पड़ा। हालांकि वंशीधर का काम के प्रति सजगता और सावधानी प्रशंसनीय है, लेकिन उनकी वफादारी ने उनके विवेक और बुद्धि को दूषित कर दिया है। इसलिए उन्हें भविष्य में होशियार रहने की सलाह दी जाती है।
(ङ) नौकरी से निकाले जाने पर वंशीधर के परिवारवालों की क्या प्रतिक्रिया रही ?
उत्तर: नौकरी से निकाले जाने पर वंशीधर के परिवारवालों की प्रतिक्रिया बहुत नकारात्मक रही। उनके पिता जी यमुना तट पर पंडित अलोपीदीन के साथ हुई घटना को लेकर काफी दुःखी थे और अन्दर-ही-अन्दर वंशीधर को कोस रहे थे। जब वंशीधर घर पहुँचे और उनको नौकरी से निकाले जाने की खबर सुनी तो उनके क्रोध का पारावार न रहा। वे अत्यंत गुस्से में बोले- ‘जी चाहता है कि तुम्हारा और अपना सिर फोड़ लूँ।’ उनकी वृद्ध माता जी को भी काफी दुःख हुआ और उनकी तीर्थयात्रा की कामना अधूरी रह गई।
(च) पं. अलोपीदीन ने वंशीधर को अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर क्यों बनाया ?
उत्तर: पंडित अलोपीदीन ने मुंशी वंशीधर की कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी से प्रभावित होकर उन्हें अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर बनाया। आमतौर पर किसी व्यक्ति को उच्च पद पर नियुक्त करने से पहले हर दृष्टिकोण से उसकी परीक्षा ली जाती है। पंडित अलोपीदीन को पैसे की ताकत पर अखण्ड विश्वास था और वे इस के बल पर बड़े-बड़े अधिकारियों को अपने इशारों पर नचाते थे।लेकिन वंशीधर उन सबमें अलग नजर आए। यमुना तट पर अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए पंडित अलोपीदीन मुंशी वंशीधर को ऊँची-से-ऊँची रिश्वत का प्रलोभन देकर भी वंशीधर को उनके सच्चे मार्ग से विचलित कर पाने में असफल रहे। और यही कारण है कि कहानी के अन्त में वे स्वयं प्रार्थना पत्र लेकर वंशीधर के घर जाते हैं और उन्हें अपनी सारी जायदाद के स्थायी मैनेजर पद के लिए राजी कर लेते हैं।
(छ) “पं. अलोपीदीन मानवीय गुणों के पारखी थे।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर: पंडित अलुपीदीन एक धनी और अनुभवी व्यक्ति थे। उनका लक्ष्मी पर अटूट विश्वास था। उसने धन के बल पर कई उच्च अधिकारियों को हराया और उन्हें अपने धन का गुलाम बनाकर छोड़ दिया। लेकिन जब उसकी मुलाकात मुंशी वंशीदार जैसे वफादार, ईमानदार और सम्मानित पुलिस इंस्पेक्टर से होती है, तो उसे पहली बार एहसास होता है कि दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जो अपनी पहचान स्थापित करने के लिए धर्म के नाम पर अपना सब कुछ बलिदान कर देते हैं। ऐसा व्यक्ति दबाव या प्रलोभन में नहीं पड़ता। इन्हें परिस्थिति की परवाह नहीं होती, ये किसी भी परिस्थिति में चट्टान की तरह अपने सही रास्ते पर डटे रहते हैं। पंडित अलुपीदीन वंशीदार के उपर्युक्त गुणों से प्रभावित हुए और उन्हें अपनी सारी संपत्ति का स्थायी संरक्षक नियुक्त किया। अत: यह कहा जा सकता है कि पंडित अलुपीदीन मानवीय विशेषताओं के विशेषज्ञ थे।
(ज) मुंशी वंशीधर की चारित्रिक गुणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: मुंशी वंशीधर एक पढ़े-लिखे व्यक्ति थे। आज्ञाकारिता, आदर्शवादिता, कर्तव्य निष्ठा, कार्यकुशलता, ईमानदारी और त्याग उनके चरित्र की उल्लेखनीय विशेषताएँ थीं। वे एक आज्ञाकारी पुत्र की भाँति पिता से ऊपरी आय का उपदेश तो ग्रहण कर लेते हैं, परन्तु एक आदर्शवादी व्यक्ति की तरह उस उपदेश को वहीं छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं। नमक विभाग में दारोगा के पद पर प्रतिष्ठित होते ही अपनी कार्यकुशलता और उत्तम आचार से सभी अफ़सरों को मोहित कर उनका विश्वासपात्र बन जाते हैं। यमुना तट पर पंडित अलोपीदीन के हर प्रलोभन का मुँहतोड़ जवाब देते हुए अपनी कठोर धर्मनिष्ठा और ईमानदारी का परिचय देते हैं। हालांकि वे अदालत में पंडित अलोपीदीन से हार जाते हैं, किन्तु अपने चारित्रिक गुणों की अमिट छाप उनके हृदय पर छोड़ने में सफल हो जाते हैं। मुंशी वंशीधर के चारित्रिक गुणों से प्रभावित होकर ही अंत में पंडित अलोपीदीन उनको अपनी सारी जायदाद के स्थायी मैनेजर पद पर नियुक्त करते हैं।
4.आशय स्पष्ट कीजिए:
(क) मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्त्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है।
उत्तर: उक्त कथन हमारी पाठ्य पुस्तक ‘अंबर भाग-2’ के ‘नमक का दारोगा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है, जिसके लेखक मुंशी प्रेमचंद हैं।
उक्त कथन में लेखक ने वंशीधर के पिता वृद्ध मुंशी जी के माध्यम से मासिक आय और ऊपरी आय की आपस में तुलना कर ऊपरी आय वाले ओहदे को ज्यादा महत्त्व प्रदान करने का प्रयास किया है। उनका आशय यह है कि मासिक आय एक निश्चित राशि है जो महीने की निश्चित अवधि में धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है। उससे हम अपनी सभी जरूरतें पूरी नहीं कर सकते हैं। लेकिन ऊपरी आय वाली राशि की कोई सीमा नहीं होती और न ही इसे पाने की कोई निश्चित तारीख। यह किसी भी समय हासिल हो सकती है। इस आय से हम अपनी सभी जरूरतें आराम से पूरी कर सकते हैं।
(ख) न्याय और नीति सब लक्ष्मी के खिलौने हैं, इन्हें वे जैसा चाहती है, नचाती है।
उत्तरः उक्त कथन हमारी पाठ्य पुस्तक ‘अंबर भाग-2’ के ‘नमक का दारोगा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है, जिसके लेखक मुंशी प्रेमचंद हैं।
उक्त कथन में लेखक का आशय यह है कि आज पैसा मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी बन गया है। पैसे के लिए हर व्यक्ति अपना ईमान बेचने के लिए तैयार खड़ा है। मनुष्य की अत्यधिक धन कमाने की प्रवृत्ति ने ही समाज में भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी एवं अवैध कारोबार जैसी बुराइयों को जन्म दिया है। पैसे के बल पर न केवल उच्च पदाधिकारी खरीदे जाते हैं बल्कि न्यायाधीशों के फैसले भी बदल दिए जाते हैं। आज हर व्यक्ति पैसे के पीछे भाग रहा है।
अतिरिक्त प्रश्न एवं उत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
- ‘न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया।’ इस पंक्ति में धर्म और धन के प्रतिनिधि कौन-कौन हैं ?
उत्तर: ‘न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध उन गया।’ इस पंक्ति में धर्म के प्रतिनिधि मुंशी वंशीधर तथा धन के प्रतिनिधि पं. अलोपीदीन हैं। - मुंशी वंशीधर द्वारा पं. अलोपीदीन की सारी जायदाद के स्थायी मैनेजर पद को स्वीकार करने की स्थिति में उनको मिलनेवाली सुविधाएँ क्या थीं ?
उत्तर: मुंशी वंशीधर द्वारा पं. अलोपीदीन की सारी जायदाद के स्थायी मैनेजर पद के स्वीकार करने की स्थिति में उनको मिलनेवाली सुविधाओं में छह हजार रूपये वार्षिक वेतन के अलावा प्रतिदिन का खर्च अलग, आने-जाने के लिए घोड़ा, रहने के लिए बैंगला तथा मुफ्त के नौकर-चाकर थे।
आशय स्पष्ट कीजिए
(क) ‘हम उन नमकहरामों में नहीं है, जो कौड़ियों में अपना ईमान बेचते फिरते हैं।’
उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्य पुस्तक ‘ अंबर भाग-2’ के ‘नमक का दारोगा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है, जिसके लेखक मुंशी प्रेमचंद हैं। उक्त पंक्ति में लेखक का आशय यह है कि एक चरित्रहीन व्यक्ति थोड़े से लालच में आकर अपने कर्तव्य और ईमान से समझौता कर लेता है। लेकिन एक चरित्रवान् व्यक्ति हर प्रलोभन का मुँहतोड़ जवाब देते हुए अपने सच्चे मार्ग पर अविचलित खड़ा रहता है और समाज में अपनी अलग पहचान बनाता है। पाठ के संदर्भ में यह बात मुंशी वंशीधर द्वारा कही गई है। यमुना के तट पर जब पं. अलोपीदीन अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए मुंशी वंशीधर को अन्य अधिकारियों की तरह रिश्वत देकर खरीदने का प्रयास करते हैं, तब वे अपनी कर्तव्य निष्ठा और ईमानदारी के गुणों से उन्हें लज्जित कर देते हैं।
(ख) “न्याय और विद्वत्ता, लंबी-चौड़ी उपाधियाँ, बड़ी-बड़ी दाढ़ियाँ और ढीले चोगें एक भी सच्चे आदर के पात्र नहीं हैं।”
उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘ अंबर भाग-2’ के ‘नमक का दारोगा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत हैं, जिनके लेखक मुंशी प्रेमचंद हैं।
उपरोक्त पंक्तियों से लेखक का तात्पर्य यह है कि आज समाज में बहुत अधिक पैसा कमाने की प्रवृत्ति एक संक्रामक रोग की तरह फैल गई है। यह बीमारी न केवल छोटे लोगों को, बल्कि न्यायपालिका और विज्ञान जैसे उच्च और सम्मानित पदों पर बैठे लोगों को भी प्रभावित करती है। पैसे से प्रभावित पार्टी के प्रति इन लोगों के सकारात्मक रवैये के कारण अपराधी सजा से बच जाते हैं। इन लोगों की वेशभूषा और विस्तृत उपाधियाँ केवल प्रदर्शन के उद्देश्य से हैं। ऐसे लोग यदि अपने पद के अनुरूप आचरण नहीं करते तो सम्मान खो देते हैं।
Notes of Class 10 Ambar Bhag 2 ch 7 Questions Answers | Class 10 Ambar Bhag 2 ch 7 Questions Answers इस पोस्ट में हम आपको ये समझा ने कि कोशिश की है की Class 10 Ambar Bhag 2 ch 7 Solution अगर आप एक Hindi Medium सात्र या शिक्षाक हो तो आपके लिए लावदयक हो सकता है।
Note- यदि आपको इस Chapter मे कुछ भी गलतीया मिले तो हामे बताये या खुद सुधार कर पढे धन्यवाद।