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Class 10 Hindi Chapter 8 पद-त्रय
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खोन्दो 8 पद-त्रय
Chapter 8 पद-त्रय
अभ्यासमाला
बोध एवं विचार (बिजिरनाय:)
1. ‘हाँ’ या ‘नहीं’ में उत्तर दो:
(क) हिंदी की कृष्ण-भक्ति काव्य-धारा में कवयित्री मीराँबाई का स्थान सर्वोपरि है।
(हिन्दी थुनलाइनि कृष्ण सिबियारि खन्याइगिरिफोरनि गेजेराव मीराबाईनि जायगाया गोजौसिनाव।)
उत्तर: हाँ।
(ख) कवयित्री मीराबाई भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य आराधिका थीं?
(खन्थाइगिरि मीराँबाईया भगवान श्रीकृष्णनि जोबोद सिबियारिमोन।)
उत्तर: हाँ।
(ग) राजपूतों की तत्कालीन परंपरा रा विरोध करते हुए क्रांतिकारिणी मीराँ सती नहीं हुईं।
(राजपुतफोरनि तात्कालीन परंपराखौ हें था खालामनायाव सोमावसारगिरि मीराँया रुंसारि जायासै।)
उत्तर: हाँ।
(घ) मीराँबाई अपने को श्रीकृष्ण जी के चरण-कमलों में पूरी तरह समर्पित नहीं कर पायी थीं।
(मीराबाईया गावखौ श्रीकृष्णनि आथिंनि आफायाव आबुंयै बावसोमनो हायाखैमोन।)
उत्तर: नहीं।
(ङ) मीराबाई ने सुंदर श्याम जी को अपने घर आने का आमंत्रण दिया है।
(मीराबाईया समायना गाव (श्याम) खौ गावनि न ‘सिम फैनो खावलायदोंमोन।)
उत्तर: हाँ।
2. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो:
(आबुं बाथ्राजों फिननाय लिर:)
(क) कवयित्री मीराँबाई का जन्म कहाँ हुआ था?
(खन्थाइगिरि मीराबाईनि जोनोमा बबेयाव जादमोन?)
उत्तर: कवयित्री मीराँबाई का जन्म प्राचीन राजपूताने के अंतर्गत मेड़ता प्रांत के ‘कुड़की’ नामक गाँव में हुआ था।
(ख) भक्त-कवयित्री मीराँबाई को कौन-सी आख्या मिली है?
(सिबियारि मीराबाईया मा मुं मोननाय?)
उत्तर: भक्ट-कवयित्री मीराँबाई को ‘कृष्ण प्रेम-दीवानी’ की आख्या मिली है।
(ग) मीराँबाई के कृष्ण भक्तिपरक फुटकर पद किस नाम से प्रसिद्ध हैं?
(मीराबाइनि कृष्णखौ सिबिनाय मेथाइया मा मुंजों मुंदांखा?)
उत्तर: मीराँबाई के कृष्ण भक्तिपरक फुटकर पद ‘मीराँबाई की पदावली’ नाम से प्रसिद्ध है।
(घ) मीराँबाई के पिता कौन थे?
(मीराबाइनि बिफाया सोरमोन?)
उत्तर: मीराँबाई के पिता राव रत्न सिंह थे।
(ङ) कवयित्री मीराँबाई ने मनुष्यों से किस नाम का रस पीने का आह्वान किया है?
(खन्थाइगिरि मीराबाईया मानसिफोरखौ मा मुंनि बिदै लोंनो खावलायदों?)
उत्तर: कवयित्री मीराँबाई ने मनुष्यों से राम (कृष्ण) नाम का रस पीने का आह्वान किया है।
3. अति संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में)
(गुसुकै फिन हो, फ्राय 25 सोदोबनि गेजेराव:)
(क) मीराँ-भजनों की लोकप्रियता पर प्रकाश डालो।
(मीरानि भजननि मुंदांखानि सायाव फोरमाय।)
उत्तर: कवयित्री मीराँबाई श्रीकृष्ण की अनन्य आराधिका थी। उनके द्वारा विरचित गीत-पद हिंदी के साथ-साथ भारतीय साहित्य में भी अमूल्य निधि है। भक्ति भावना एवं काव्यत्व के सहज संतुलन के कारण उनके पद अनूठे बन पड़े है। कृष्ण प्रेम-मधुरी, सहज-अभिव्यक्ति और सांगीतिक लय मीराँ भजनों की लोकप्रियता के अन्यतम कारण है।
(ख) मीराँबाई का बचपन किस प्रकार बीता था।
(मीराबाइनि उन्दै समा बोरै थांदोंमोन?)
उत्तर: बचपन में ही मीराँ की माता का देहांत हो जाने के कारण तथा पिता राव रत्न सिंह के भी युद्धों में व्यस्त रहने कारण उनका पालन-पोषण दादाजी राव दूदाजी की देख-रेख में हुआ। परम कृष्ण-भक्त दादाजी के साथ रहते रहते बालिका मीराँ के कोमल हृदय में भी कृष्ण-भक्ति का भाव उदय हुआ। आगे जाकर उन्होंने कृष्ण को ही अपना आराध्य प्रभु तथा पति मान लिया।
(ग) मीराँबाई का देहावसान किस प्रकार हुआ था।
(मीरानि थैनाया माबोरै जानाय?)
उत्तर: विवाह के सात वर्ष बाद ही विधवा होने के कारण मीराँबाई सती न होकर राजमहल त्यागकर कृष्ण की आराधना तथा साधुओं की संगति में समय बीताने लगी। अंत में साधु-संतों के साथ धूमते-धामते वे द्वारिका पहुँच गयी। कहा जाता है कि वहाँ श्री रणछोड़ जी के मंदिर में अपने आराध्य का भजन-कीर्तन करते सन् 1546 के आसपास वे भगवान मूर्ति में सदा के लिए विलीन हो गयीं।
(घ) कवयित्री मीराँबाई की काव्य भाषा पर प्रकाश डालो।
(खन्थाइगिरि मीराबाइनि खन्याइयारि रावनि सायाव फोरमाय।)
उत्तर: कवयित्री मीराँबाई के कृष्ण भक्तिमय हृदय के स्वतः उदगार भक्तिपरक गीत ‘मीराँबाई की पदावली’ ‘नाम से ख्यात है। उन्होंने मुख्य रूप से हिन्दी की उपभाषा राजस्थानी में ही काव्य रचना की है, परंतु उसमें ब्रज, खड़ीबोली, पंजाबी, गुजराती आदि के शब्द भी मिल जाते हैं। कृष्ण, प्रेम-माधुरी, सहज अभिव्यक्ति और सांगीतिक लय के कारण उनके पद पावन एवं महत्वपूर्ण बन पड़े हैं।
4. संक्षेप में उत्तर दो: (लगभग 50 शब्दों में:)
(क) प्रभु कृष्ण के चरण-कमलों पर अपने को न्योछावर करने वाली मीराँबाई ने अपने आराध्य से क्या-क्या निवेदन किया हैं?
(कृष्णनि आथिं आफाडाव गावखौ बावसोमनो मीराबाइआ गावनि सिबियारिखौ मा मा होननानै खावलायदों?)
उत्तर: कवयित्री मीराँबाई अपने आराध्य प्रभु कृष्ण के चरणों में अपने को समर्पण करते हुए कहती है कि जब मेरी प्रीति तुमसे आरम्भ हुई थी, तब तो किसी को भी पता नहीं चला और अब जब यह प्रीति प्रौढ़ हो गयी है, तो सारे संसार को पता चल गया है। अतः हे प्रभु मुझ पर शीघ्र ही कृपा कर मुझे दर्शन दीजिए और मेरी सुधि लिजिए।
(ख) सुंदर श्याम को अपने घर आने का आमंत्रण देते हुए कवयित्री ने उनसे क्या-क्या कहा है?
(समायना श्याम (कृष्ण) खौ गावनि न’आव फैनो खावलायनानै खन्थाइगिरिया बिखौ मा मा बुंदों?)
उत्तर: कवयित्री मीराँबाईआ अपने सुंदर श्याम को अपने घर आने का आमंत्रण देते हुए कहती है कि हे प्रभु! तुम्हारे विरह में मैं पके पाण की तरह पीली पड़ गयी हूँ। तुम्हारी आए बिना मैं सुध-बुध खो बैठी हूँ, मेरा ध्यान तो तुम्हीं पर है, मुझे किसी दूसरे की आशा नहीं है, अत: तुम जल्दी आकर मुझसे मिलो और मेरे मान की रक्षा करो।
(ग) मनुष्य मात्र से राम (कृष्ण) नाम का रस पीने का आह्वान करते हुए मीराँबाई ने उन्हें कौन-सा उपदेश दिया है?
(मानसिखौ राम मुंनि बिदैखौ लोंनो थाखाय मीराबाइआ बिसोरखौ मा बिथोन होनाय?)
उत्तर: मनुष्य मात्र से राम (कृष्ण) नाम का रस पीने का आह्वान करते हुए मीराँबाई ने यह उपदेश दिया है कि सभी मनुष्य कुसंग त्यागकर सत्संग में बैठकर कृष्ण का कीर्तन करें, मन से काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह को निकाल दें तथा प्रभु कृष्ण प्रेम-रंग-रस से सराबोर हो उठें। हरि भक्ति ही मनुष्य के मुक्ति का एकमत्र द्वार है।
5. सम्य्क उत्तर दो: (लगभग 100 शब्दों में):
(गोलावै फिननाय हो-फ्राय 100 सोदोबनि गेजेराव:)
(क) मीराँबाई के जीवन वृत्त पर प्रकाश डालो।
(मीराबाईनि जिउनि सायाव सावराय।)
उत्तर: कृष्ण प्रेम भक्ति की सजीव प्रतिमा मीराबाई के जीवन वृत्त को लेकर विद्वानों में पर्याप्त मतभेद रहा है। कहा जाता है कि आपका जन्म सन 1498 के आस-पास प्राचीन राजपूताने के अंर्गत मेड़ता प्रांत के कूड़की नामक स्थान में राठौड़ वंश की मेड़तिया शाखा में हुआ था। बचपन में ही माता के निधन होने और पिता राव रत्न सिंह के भी युद्धों मे व्यास्त रहने के कारण बालिका मीराबाई का लालन-पालन उनके दादा राव दुदाजी की देखरेख में हुआ। परम कृष्ण-भक्त दादाजी के साथ रहते रहते बालिका मीबा के कोमल हृदय में कृष्ण भक्ति का बीज अंकुरित होकर बढ़ने लगा। आगे आपने कृष्ण जी को ही अपना आराध्या प्रभु एवं पति मान लिया।
(ख) पठित पदों के आधार पर मीराँबाई की भक्ति भावना का निरूपण करो।
(फरानि हेफाजाबाव मीराबाइनि सिबिनायखौ फोरमायना लिर।)
उत्तर: ‘पद-त्रय’ शीर्षक के अन्तर्गत संकलित प्रथम पद में आराध्य प्रभु कृष्ण के श्रीचरणों में कवयित्री मीराँबाई के पूर्ण समर्पण का भाव व्यंजित हुआ है। वे कहती है कि मैं तो गोपाल जी के श्रीचरणों की शरण में आ गयी हूँ। पहले यह बात किसी को मालूम नहीं थी, पर अब तो संसार को इस बात का पता चल गया। अतः प्रभु गिरिधर मुझ पर कृपा करें, मुझे दर्शन दें, शीघ्र ही मेरी सुध लें। मैं तो प्रभु जी के चरण-कमलों में अपने को न्योछावर कर चुकी हूँ। द्वितीय पद में कवयित्री मीराँबाई ने आराध्य कृष्ण को अपने घर आने का आमंत्रण देते हुए कहा है कि हे कृष्ण! तुम्हारे विरह में मैं पके पाण की तरह पीली पड़ गयी हूँ। मुझे किसी दूसरे की आशा नहीं है तथा मेरा ध्यान आपही पर है। अतः आप जल्दी आकर मेरे मान की रक्षा कीजिए।
तृतीय पद में कवयित्री मनुष्य मात्र से राम (कृष्ण) नाम का रस पीने का आह्वान करते हुए कहती है कि सभी मनुष्य कुसंग छोड़ें और सत्संग में बैठकर कृष्ण का गुणानुकीर्तन करें तथा मन से बुरे भावनाओं को त्यागकर कृष्ण-प्रेम रस से सराबोर उठें।
इस प्रकार कवयित्री मीराँबाई की भक्ति-भावना में प्रेम-माधूर्य का संचार हुआ है।
(ग) कवयित्री मीराँबाई का साहित्यिक परिचय प्रस्तुत करो।
(खन्थाइगिरि मीराबाइनि थुनलाइयारि जिउनि सिनायथि हो।)
उत्तर: हिन्दी साहित्य के कृष्ण भक्ति काव्य धारा में कवयित्री मीराँबाई का स्थान महाकवि सूरदास के बाद ही है। हालाँकि हिन्दी कवयित्रीयों में वे अग्रणी स्थान की अधिकारी है।
कवयित्री मीराबाई की रचनाओं में प्रमाणिकता की दृष्टि से कृष्ण- भक्तिपरक लगभग दो सौ फुटकर पद ही विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। ये फुटकर पद ‘मीराँबाई की पदावली’ नाम से प्रसिद्ध हैं। ये पद कवयित्री मीराँबाई के कृष्ण भक्तिमय हृदय के स्वतः उदगार हैं। उन्होंने मुख्य रूप से राजस्थानी में ही काव्य रचना की है, किंतु उसमें ब्रज, खड़ीबोली, पंजाबी, गुजराती आदि के शब्द मिल जाते हैं। कृष्ण प्रेम-माधूरी, सहज अभिव्यक्ति और सांगीतिक लय के मिलन से कवयित्री मीराँबाई के पद त्रिवेणी संगम के समान पावन और महत्वपूर्ण बन पड़े है।
6. सप्रसंग व्याख्या करो:
(बेखेवनानै लिंर:)
(क) “मैं तो चरण लगी………… चरण-कमल बलिहार।”
उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आलोक भाग-2’ के अन्तर्गत कवयित्री मीराँबाई द्वारा रचित ‘पदं-त्रय’ से ली गई हैं।
इन पंक्तियों में अपने आराध्य के प्रति मीराँ के प्रेम, तथा भक्ति-भाव को दर्शाया गया है।
मीराँ कहती हैं कि हे गोपाल ! मैं तुम्हारे शरण में आ गयी हूँ। जब मेरी प्रीति तुम से आरम्भ हुई थी, तब तो किसी को भी पता नहीं था, लेकिन अब पूरे संसार को इस बात का पता चल गया है। इसलिए आप मुझ पर कृपा करें और मुझे दर्शन देकर मेरी सुध लें। मीराँ कहते हैं, कि हे गिरधर नागर! मैं तो तुम्हारे चरण- कमलों पर न्यौछावर हो गयी हूँ।
(ख) “म्हारे घर आवौ…..……… राषो जी मेरे माण।”
उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आलोक भाग-2’ के अन्तर्गत कवयित्री मीराँबाई द्वारा रचित ‘पद-त्रय’ से ली गई हैं।
इन पंक्तियाँ में मीराँबाई ने अपने आराध्य श्रीकृष्ण को घर आने का आमंत्रण दिया है।
कवयित्री मीराँबाई अपने जीवन धार श्याम जी को अपने आने का आमंत्रण देते हुए कहती हैं कि हे प्रभु! तुम्हारे विरह में मैं पके पाण की तरह पीली पड़ गयी हूँ, मुझे तुम्हारे बिना किसी और की आस नहीं है, मेरा ध्यान तो सिर्फ तुम्हीं पर है। अत: तुम जल्दी ही आकर मुझसे मिलो और मेरी तुम जल्दी ही आकर मुझसे मिलो और मेरी मान की रक्षा करो।
(ग) “राम नाम रस पीजै……….. ताहि के रंग में भीजै।”
उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आलोक भाग-2’ के अन्तर्गत कवयित्री मीराँबाई द्वारा रचित ‘पद-त्रय’ से ली गई हैं।
इन पंक्तियों में मीराँबाई ने मनुष्य को राम-नाम में भीग जाने को कहा है।
कवयित्री मीराँबाई मनुष्य मात्र से राम-नाम का रस पीने का आह्वान करते हुए कहती हैं कि हे मनुष्य ! तुमलोग राम नाम का रस पीओ। कुसंग त्यागकर सत्संग में बैठकर हरि का कीर्तन सुन लो। मनसे काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार तथा मात्सर्य-इन छः रिपुओं को चित्र से निकाल दें तथा कृष्ण के प्रेम-रंग-रस में सराबोर हो उठें।
भाषा एवं व्याकरण-ज्ञान:
1. निम्नांकित शब्दों के तत्सम रूप लिखो: (गुबै महरखौ लिर)
किरपा, दरसन, आसा, चरचा, श्याम, धरम, किशन, हरख
उत्तर: किरपा = कृपा।
दरसन = दर्शन।
आसा = आशा।
चरचा = चर्चा।
श्याम = श्यामल।
धरम = धर्म।
किशन = कृष्ण।
हरख = हर्ष।
2. वाक्यों में प्रयोग करके निम्नलिखित लगभग समोच्चरित शब्द जोड़ों के अर्थ का अंतर स्पष्ट करो:
(एखे रोखोम सोदोबनि ओंथिखौ बाथ्राजों आलादायै फोरमायना दिन्थि)
संसार-संचार, चरण-शरण, दिन-दीन, कुल-कूल, कली-कलि, प्रसाद-प्रासाद, अभिराम-अविराम, पवन-पावन।
उत्तर: संसार (पृथ्वी) = पेड़-पौधों के बिना संसार अस्तित्व संकट में आ जायेगा।
संचार (परिभ्रमण) = संत लोग यहाँ-वहाँ संचार करते रहते हैं।
चरण (पैर) = रामु ने दादी के चरण स्पर्श किये।
शरण (दीक्षा) = दादाजी ने उस सत्र में शरण लिया है।
दिन (दिवस) = आज का दिन बहुत ही शुभ है।
दीन (गरीब) = हमें दीन लोगों की सहायता करनी चाहिए।
कुल (वंश) = श्रीराम ने अपने कुल की मार्यादा निभाई।
कूल (किनारा) = ब्रह्मपुत्र नद के दोनों कूल गंदगी से भरे हैं।
कली (आधखिला फूल) = बाग में अनेक कलियाँ खिलनेवाली हैं।
कलि (पाप, झगड़ा) = इस कलियुग में छोटे बड़ो का सम्मान करना भी भूल गये हैं।
प्रसाद (भोग, कृपा) = पूजा में तरह-तरह प्रसाद चढ़ाए जाते हैं।
प्रासाद (महल) = राजा का प्रासाद लाल पत्थरों से बनाया था।
अभिराम (सुन्दर) = असम का प्राकृतिक दृश्य उत्यंत अभिराम है।
अविराम (लगातार) = इन दिनों गर्मी अविराम बढ़ती जा रही है।
पवन (हवा) = सुबह का पवन राहत के लिए अच्छा है।
पावन (पवित्र) = गंगा एक पावन नदी है।
3. निम्नलिखित शब्दों के लिंग-परिवर्तन करो:
(गाहायनि सोदोबफोरनि आथोन सोलाय)
कवि, अधिकारिणी, बालिका, दादा, पति, भगवान, भक्तिन
उत्तर: कवि: कवयित्री।
अधिकारिणी: अधिकार।
बालिका: बालक।
दादा: दादी।
पति: पन्ती।
भगवान: भगवत्ती।
भक्तिम: भक्त।
4. विलोमार्थक शब्द लिखो:
(उल्था सोदोब लिर:)
पूर्ण, सजीव, प्राचीन, कोमल. अपना, विरोध, मिथ्या, कुसंग, सुंदर, अपमान, गुप्त, आनंद।
उत्तर: पूर्ण = अपूर्ण।
सजीव = निर्जीव।
प्राचीन = नवीन।
कोमल = कठोर।
अपना = पराया।
मिथ्या = सत्य।
कुसंग = सत्संग।
सुंदर = कुरूप।
अपमान = सम्मान।
गुप्त = प्रकट।
विरोध = शांत।
आनंद = निरानंद।
5. निम्नलिखित शब्दों के वचन-परिवर्तन करो:
(गाहायाव होनाय सोदोबफोरनि सानराय सोलाय:)
कविता, निधि, कवि, पौधा, कलम, औरत, सखी, बहू।
उत्तर: कविता: कविताएँ।
निधि: निधियाँ।
कवि: कवि लोग।
कलम: कलमें।
पौधा: पौधे।
औरत: औरतें।
सखी: सखियाँ
बहू: बहूएँ।
योग्यता विस्तार
1. कवयित्री मीराबाई द्वारा विरचित निम्नलिखित पदों को समझने एवं गाने का प्रयास करो:
(खन्थाइगिरिजो मीराबाइजों रनसायजानाय गाहायाव होनाय सारिफोरखौ बुजिनो आरो खननो नाजा:)
(क) पायो जी मैने राम रतन धन पायो।।
वस्तु अमोलक दी म्हारे सत गुरु, किरपा करि अपनायो।
जनम जनम की पूँजी, जग में सभी खोवायो।
खरचै नही कोई चोर न लेवै, दिन-दिन बढ़त सवायो।
सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, हरख हरख हरख जस गायो।।
(ख) माई म्हें गोविंदो लीन्ही मोल।।
कोई कहै सस्तो, कोई कहै मंहगो, लीनी तराजू तोल।
कोई कहै घर में कोई कहै बन में, राधा के संग किलोल।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, आवत प्रेम के मोल।
(ग) मैं गिरधर के घर जाऊँ।।
गिरधर म्हारों साँचों प्रीतम, देखत रूप लुभाऊँ।
रैप पडै तब ही उठि जाऊ, भीर भये उठि आऊँ।
जो पहिरावै सोई पहिरुं, जो दे सोई खाऊँ।।
मेरी उणकी प्रीत पुराणी, उण विण पल न रहाऊँ।
जहँ बैठावे तितही बैठु, बेचे तो बिक जाऊँ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बार बार बलि जाऊँ।
2. अपने पति भोजराज की मृत्यु के पश्चात राजपूतों की प्रचलित पंरपरा का विरोध करते हुए मीराबाई सती नहीं हुई थी। सती प्रथा के बारे में जानकारी एकत्र करो।
(गावनि फिसाइ भोजराजनि थैनायनि उनाव राजपुतआव सोलिबोबाय थानाय दोरोंनि हैं था खालामनानै मीराबाईआ सती जायाखैमोन। सती खान्थिनि सोमोन्दै मिथिना ला।)
उत्तर: सती दाह प्रथा समाज के सबसे अधिक भयानक कु प्रथा है। इस प्रथा के अनुसार पति का स्वर्गवास के पश्चात पत्नी को इच्छा के विरुद्ध मृत पति के साथ जिन्दा जलाया जाता है।
यह प्रथा बहुत दिन पहले राजस्थान में प्रचलित था। पति भोजराज जी के मृत्यु के पश्चात उस मीरा तत्कालीन परपरा का विरोध करते हुए सती नही हुई।
(सती सावनाय खान्थिया बयनिखुइ बांसिन गिलबालु गाज्रि खान्थि। बे’ खान्थि बादियै फिसाइ थैनायनि उनाव बिसिखौ गोसोनि बेरेखायै गोथै फिसाइनि लोगोआव गोथाङे सावफानाय जायो।
बे खान्थिया गोबां सान सिगां राजस्थानाव सोलिदोंमोन। फिसाइ बोजराजनि थैनायनि उनाव बे समनि समाज खान्थिया मीराखौ सती खालामनो नागिरदोंमोन। नाथाय मीराया लोगो लोगोनो दोरों आरि खान्थिनि हें थायै गसंनानै सती जायाखिसै।)
SEBA Class 10 Hindi In Bodo
Chapter No. | CONTENTS |
Chapter – 1 | नींव की ईंट (बिथानि इथा) |
Chapter – 2 | छोटा जादूगर |
Chapter – 3 | नीलकंठ |
Chapter – 4 | भोलाराम का जीव |
Chapter – 5 | सड़क की बात |
Chapter – 6 | चिट्ठियों की अनूठी दुनिया |
Chapter – 7 | साखी |
Chapter – 8 | पद-त्रय |
Chapter – 9 | जो बीत गयी |
Chapter – 10 | कलम और तलवार |
Chapter – 11 | कायर मत बन |
Chapter – 12 | मृत्तिका |
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