SEBA Class 9 Hindi Notes Chapter 8 in Bodo मणि-कांचन संयोग (सना-मुकुटानि सोमोन्दो). Class 9 Hindi Question Answer in Bodo to each Chapter is provided in the list of SCERT, NCERT, SEBA हिंदी |आलोक Class 9 Question Answer दिए गए हैं ताकि आप आसानी से विभिन्न अध्यायों के माध्यम से खोज कर सकें और जरूरतों का चयन कर सकें. Class 9th Hindi Chapter 8 Sona Mukutani Somondo Question Answer Class 9 Bodo Medium Hindi Chapter 8 Questions Answer. SEBA Bodo Medium Class 9 Hindi Chapter 8 मणि-कांचन संयोग Notes covers all the exercise questions in NCERT, SCERT.
SEBA Class 9 Hindi Notes Chapter 8 in Bodo मणि-कांचन संयोग (सना-मुकुटानि सोमोन्दो)
बोडो मीडियम कक्षा 9 हिंदी खोन्दो 8 सना-मुकुटानि सोमोन्दो Question Answer | Moni-Kanchan Sangyog/ Sona-Mukutani Somondo | इस पोस्ट में हम आपको ये समझा ने कि कोशिश की है की कक्षा 9 बोडो मीडियम आलोक खोन्दो 8 मणि-कांचन संयोग Question Answer. अगर आप एक सात्र या शिक्षाक हो बोडो मीडियम की, तो आपके लिए ये बोडो मीडियम कक्षा 9 हिंदी खोन्दो 8 Question Answer बोहत लाभदायक हो सकता है। कक्षा 9 हिंदी खोन्दो 8 मे आप अपना ध्यान लगाके पढ़ कर इस Class 9 hindi chapter 8 bodo medium में अछि Mark ला सकते हो अपनी आनेवाली परीक्षा में।
खोन्दो 8 मणि-कांचन संयोग (सना-मुकुटानि सोमोन्दो)
Chapter 8 Moni-Kanchan Sangyog/ Sona-Mukutani Somondo
अभ्यास-माला
बोध एवं विचार (बुजि आरो बिजिर)
(अ) सही विकल्प का चयन करो (थार फिन्नायखौ सायख’:)
1. धुवाहाता बेलगुरि नामक पवित्र स्थान कहाँ स्थित है? (धुवाहाता बेलगुरि मुंनि गोथार जायगाया बबेहाय दं?)
(क) बरपेटा में।
(ख) माजुलि में।
(ग) पाटबाउसी में।
(घ) कोचबिहार में।
उत्तर : (ख) माजुलि में।
2. शंकरदेव के साथ शास्त्रार्थ से पहले माधवदेव थे– (शंकरदेवनि लोगोसे दान्थे-बिदान्थे जानायनि सिगां माधवदेबामोन)
(क) शाक्त।
(ख) शैव।
(ग) वैष्णाव।
(घ) सूर्योपासक।
उत्तर : शाक्त।
3. सांसारिक जीवन में शंकरदेव और माधवदेव का कैसा संबंध था? (सरासनस्रा जिउ खुंनाय समाव शंकरदेव आरो माधवदेबनि सोमोन्दोआ मामोन?)
(क) चाचा-भीतजे।
(ख) भाई-भाई का।
(ग) मामा-भांजे का।
(घ) मित्र-मित्र का।
उत्तर : (ग) मामा-भांजे का।
4. शंकरदेव के मुँह से किस ग्रंथ का श्लोक सुनकर माधवदेव निरुत्तर हो गए थे? (शंकरदेवनि खुगानिफ्राय माबै बिजाबनि स्लकखौ खोनासं होनानै माधवदेवखौ निजोम जाहोदोंमोन?)
(क) ‘गीता’ का।
(ख) ‘रामायण’ का।
(ग) ‘महाभारत’ का।
(घ) ‘भागवत’ का।
उत्तर : (घ) ‘भागवत’ का।
5. किसने किससे कहा, बताओ : (सोर सोरखौ बुङो, फोरमाय:)
(क) ‘माँ को शीघ्र स्वस्थ कर दो।’ (‘बिमाखौ गोख्रै मोजां देहा खालामना हो।’)
उत्तर : श्री माधवदेव ने देवी गोसानी से कहा था।
(ख) ‘बलि चढ़ाना विनाशकारी कार्य है।’ (बोलि होनाया फोजोबसांनाय खामानि)
उत्तर : श्री माधवदेव की बहनोई रामदास ने माधवदेव से यह बात कहा था।
(ग) ‘अब तक मैंने कितने ही धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया है।’ (‘दासिम आं बेसेबांबा धोरोम बिजाबखौ फरायखांबाय।’)
उत्तर : यह बात श्री माधवदेव ने बहनोई रामदास से कहा था।
(घ) ‘वे एक ही बात से तुम्हें निरुत्तर कर देंगे।’ (‘बिथाङा नोंखौ फंसे बाथ्राजोंनो निजोम खालामना दोनगोन।’)
उत्तर : यह बात बहनोई रामदास ने माधवदेव से कहा था।
(ङ) ‘यह दीघल-पुरीया गिरि का पुत्र माधव है।’ (‘बियो दीघल-पुरीया गिरिनि फिसाज्ला माधव।’)
उत्तर : यह बात रामदास ने महापुरुष श्रीशंकरदेव से कहा था।
6. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो : (आबुं बाथ्राजों फिन हो 🙂
(क) विश्व का सबसे बड़ा नदी-द्वीप माजुलि कहाँ बसा हुआ है? (बुहुमनि बयनिखुरै देरसिन दैमा-द्वीप माजुलिया बहा दं?)
उत्तर : विश्व का सबसे बड़ा नदी-द्वीप माजुलि महाबाहु ब्रह्मपुत्र की गोद में बसा हुआ है।
(ख) श्रीमंत शंकरदेव का जीवन-काल किस ई. से किस ई. तक व्याप्त है? (श्रीमन्त शंकरदेवनि जिउ-समा मबे मायथाइनिफ्राय मबे मायथाइसिम थांना थादोंमोन?)
उत्तर : श्रीमंत शंकरदेव का जीवन-काल ई. 1449 से ई. 1568 तक व्याप्त है।
(ग) शंकर-माधव का मिलना असम-भूमि के लिए कैसा साबित हुआ? (शंकर-माधवनि गोरोबलायनाया आसाम रायजोनि थाखाय माबादि बिहोमा होयो?)
उत्तर : शंकर-माधव का मिलन असम भूमि के लिए सोने में सुगंहा जैसा साबित हुआ।
(घ) महाशक्ति का आगार ब्रह्मपुत्र क्या देखकर अत्यंत हर्षित हो उठा था? (महाशक्ति (गेदेमा गोहोनि) नि फिसाज्ला ब्रह्मपुत्रआ माखौ नुनानै जोबोद गोजोन मोनदोंमोन?)
उत्तर : महाशक्ति का आगार ब्रह्मपुत्र अपनी गोद में मामा भांजे को गुरु-शिष्य बनते देखकर अत्यंत हर्षित हो उठा था।
(ङ) माधवदेव को शिष्य के रुप में स्वीकार कर लेने के बाद शंकरदेव क्या बोले? (माधवदेवखौ सोलोंसानि महराव गनायना लानायनि उनाव शंकरदेवा मा बुङो?)
उत्तर : माधवदेव को शिष्य के रुप में स्वीकार कर लेने के बाद शंकरदेव ने बोला कि– “उन्हें पाकर शंकरदेव का जीवन पूरा हो गया।”
(च) किस घटना से असम के सांस्कृतिक इतिहास में एक सुनहरे अध्याय का श्रीगणेश हुआ था? (मा जाथायनिफ्राय आसामनि हारिमुवारि जारिमिनाव मोनसे सनाथि सोलोंथायनि मेगन नुहोंदोंमोन?)
उत्तर : शंकर-माधव की महामिलन की घटना से असम के सांस्कृतिक इतिहास में एक सुनहरे अध्याय का श्री गणेश हुआ था।
7. अति संक्षिप्त उत्तर दो : (जोबोद गुसुङै फिन हो 🙂
(क) ब्रह्मपुत्र नद किस प्रकार शंकरदेव-माधवदेव के महामिलन का साक्षी बना था? (ब्रह्मपुत्र दैमाया मा रोखोमै शंकरदेव-माधवदेवनि गेदेर लोगो मोनलायनायनि साखि जादोंमोन?)
उत्तर : महाशक्ति का आगार ब्रह्मपुत्र नद अपनी गोद में मामा-भांजे के गुरुशिष्य के संबंध में बांधकर वे महामिलन की साक्षी बना, क्योंकि इसकी किनारे में ही ये दोनों महापुरुषों ने भागवती वैष्णब धर्म के बोज बोई थी।
(ख) धुवाहाटा-बेलगुरि सत्र में रहते समय श्रीमंत शंकरदेव किस महान प्रयास में जुटे हुए थे? (धुवाहाटा-बेलगुरि सत्रआव थानाय समाव श्रीमन्त शंकरदेबा मा गेदेमा खामानियाव नाजाथावना मावगासिनो दंमोन?)
उत्तर : धुवाहाटा-बेलगुरि सत्र में रहते समय श्रीमंत शंकरदेव शक्ति की उपासना तंत्र-मंत्र, बलि-विधान में जोड़े हुए असमीया समाज के सरलतम मार्ग ले चलने के महान प्रयास में जोड़े हुए थे।
(ग) माधवदेव ने कब और क्या मनौती मानी थी? (माधवदेबा माब्ला आरो माखौ गोसोजों हामब्लायनाय बाउदोंमोन?)
उत्तर : एक बार माधवदेव की बिधवा माँ सख्त बीमार पर पड़ा था। माँ के स्वास्थ्य ठीक होने के लिए वह देवी गोसानी से मनौतो मानी थी कि वे एक जोड़ा सफेद बकरी भेंट देंगे।
(घ) “इसके लिए आवश्यक धन देकर माधवदेव व्यापार के लिए निकल पड़े।” –प्रस्तुत पंक्ति का संदर्भ स्पष्ट करो। (‘बेनि थाखाय गोनां जानाय दोहोनखौ होनानै माधवदेबा फालांगिनि थाखाय ओंखार लाङो।’ –मखनाय बाथ्रा सिरिनि सोमोन्दै रोखा खालाम।)
उत्तर : इसका अर्थ यह है कि देवी गोसानी की मनौटी के तैर पर देनेवाले एक जोड़ा सफेद बकरी खरीदकर रखने के लिए माधवदेव अपनी बहनोई रामदास से अनुरोध किया और इसके लिए आवश्यक धन देकर व्यापार करने निकल पड़े।
(ङ) ‘माधवदेव आप से शास्त्रार्थ करने के लिए आया है।’ किसने, किससे और किस परिस्थिति में ऐसा कहा था? (‘माधवदेबा नोंथांजों शास्त्रनि बाथ्रा सावरायनो थाखाय फैदों। ‘सोर सोरखौ आरो मा थासारियाव बैफोर बादि बुंदोंमोन?)
उत्तर : यह कथन माधवदेव के बहनोई रामदास ने महापुरुष श्री शंकरदेव से कहा था। जब वह वलि-विधान के विरुद्ध रामदास का कुछ भी बात मानने की तैयार न था। रामदास खुद हारकर, माधवदेव को शंकरदेव के पास ले आएँ थे।
5. संक्षेप में उत्तर दो : (सुंद’ यै फिन हो 🙂
(क) शंकर-माधव के महामिलन के संदर्भ में ‘मणि-कांचन संयोग’ आख्या की सार्थकता स्पष्ट करो। (शंकर-माधवनि गेदेमा लोगोमोनलायनायनि सोमोन्दै ‘सना-मुकुटानि सोमोन्दो’ होन्ना फोरमायनाया बेसेबां जाफुंसारदों रोखा खालाम।)
उत्तर : शंकर-माधव के महामिलन के संदर्भ में मणि-कांचन संयोग आख्या की सार्थकता पूरी रुप से है। शंकर और माधव दोनों महापुरुषों ने सन्मिलित रुप से एक जुठ होकर भागवती वैष्णव-धर्म के प्रचार प्रचार किया। अगर शंकर की मणि के उपमा से विभुषित किया जाता है तो माधव उस मणि की सबाँरने वाला सोना। मणि आरो सोना (कांचन) एक साथ होकर ही एक दूसरे का सुन्दरता बढ़ता अकेली नहीं, जैसे शंकर-माधव दोनों की-मिलन से असम-भूमि के लिए सोने में सुगंध जैसा साबित हुआ। इसलिए शंकर माधव के महामिलन को मणि-कांचन संयोग उपमा से विभूषित किया जा सकता है।
(ख) बहनोई रामदास के घर पहुँचने पर माधवदेव ने क्या पाया और उन्होंने क्या किया? (बिबोनां रामदासनि न सौहैनानै माधवदेबा मा मोनो आरो बिथाङा मा खालामो?)
उत्तर : बहनोई रामदास के घर पहुँचकर माधवदेव ने देखा की उसकी बीमार माँ देवी गोसानी की कृपा से स्वस्थ होने लगी थी, जिसे देखकर उसकी जान में जान गई। उन्होंने मन ही मन देवी माता की प्रणाम करके उनके प्रति अकृत्रिम कृतग्यता प्रकट की और मनौती के अनुसार सफेद बकरी का जोड़ा खरीदकर रखने के लिए बहनोई रामदास से अनुरोध किया और उसके लिए आवश्यक धन देकर वह व्यापार के लिए निकल पड़े।
(ग) रामदास ने बलि-विधान के विरोध में माधवदेव से क्या-क्या कहा? (रामदासा बोलि-विधान होनायनि हेथायै माधवदेवखौ मा मा बुङो)
उत्तर : गुरु शंकरदेव से मिली ज्ञान-ज्योति के बलपर रामदास ने माधवदेव को बलि-विधान के विरोध से बहुत समझाया था। वह समझाया था कि वलि-विधान चढ़ाना विनाशकारी कार्य है। बेकार में किसी दूसरी जीव को हत्या करके कुछ भी प्राप्ति नहीं होता। उसके अनुसार इस लोक में बकरा काटनेवाली की उस लोक में बकरे के हाथों कटना पड़ता है।
(घ) शास्त्रार्थ के दौरान शंकरदेव द्वारा उद्धृत ‘भागवत’ के श्लोक का अर्थ सरल हिन्दी में प्रस्तुत करो। (शास्त्रनि बाथ्रा सावरायनायाव शंकरदेवनि जुनै फोरमायजानाय ‘भागवत’ नि श्लकनि ओंथिखौ गोरलै हिन्दी रावाव बेखेवना हो।)
उत्तर : शास्त्रार्थ के दौरान शंकरदेव द्वारा निम्नलिखित भागवत का श्लोक उद्धृत किया है–
‘यथा तरोर्मूलनिषेचनेन तृप्यन्ति तत्स्कंधभुजीपशाखा: । प्राणोपहाराच्च यथेन्द्रियाणां तथैव सर्वार्चनमच्युतेभ्यः ॥’
इसका अर्थ है जिस प्रकार वृक्ष के मूल को सींचने से तहनियाँ पत्ते, फूल सब संजीवित होते हैं अथवा अन्न-ग्रहण के जरिए प्राण का पोषण करने से मानव-शरीर की सारी इंद्रियाँ तृप्त होती हैं, उसी प्रकार परम ब्रह्म कृष्ण से सारे देवी-देवता अपने-आप संतुष्ट हो जाते हैं।
(ङ) शंकरदेव की साहित्यिक देन के बारे में बताओ। (शंकरदेबनि थुनलायारि अवदाननि सोमोन्दै फोरमाय।)
उत्तर : साहित्यिक की क्षेत्र में शंकरदेव का अवदान बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है। 13 वर्ष की आयु से 35 वर्ष की आयु तक श्री शंकरदेव का महेन्द्र कन्दली के विद्यालय में छात्रकाल रहा। इसी बीच उन्होंने सर्वप्रथम काव्यकृति हरिचन्द्रउपाख्यान साहित्य जगत को भेंट की।
हरिचन्द्र उपाख्यान के अतिरिक्त रुक्मिणी हरण, पारिजात हरण, राम विजय, छः अंकों का नाटके एवं वरगीत, भतिमा, गुणमाला, सदृश श्रीषु रचनाए श्री शंकरदेवं ने की हैं। इनकी सर्वोतम कृति है कीर्तन घोषा महाकाव्य।
(च) माधवदेव की साहित्यिक देन को स्पष्ट करो। (माधवदेवनि थुनलायारि अवदानखौ रोखा खालाम।)
उत्तर : गुरु से असीम प्रेरणा पाकर श्री श्री माधवदेव ने अपनी अनमोल देन से असमीया साहित्य के भंडार की रोशन कर दिया था। उसके काव्य रचनाओं में नामघोषा, जन्म रहस्य, राजसुय, भक्ति रत्नावली आदि विशेष रुप से उल्लेखनीय है। उन्होंने चोर-धरा, पिंपरा गुचोवा, भोजन बिहार, भूमि-लेटोवा, दधि-मथंन आदि नाटक भी रचे हैं। गुरु की आज्ञा से उसने नौ कोड़ी ग्यारह बरगीत भी रचे, हैं जिनमें से लगभग एक सौ इक्यासी बरगीत आज उपलब्ध है।
6. सम्यक उत्तर दो : (थार फिननाय हो 🙂
(क) माधवदेव की माँ की बीमारी के प्रसंग को सरल हिन्दी में वर्णित करो। (माधवदेवनि बिमानि बेराम जानायनि बिथिंखौ गोरलैयै हिन्दी रावाव रबेखेवना हो।)
उत्तर : माधवदेव जब अपनी सारी पैत्रिक संपत्ति बांडुका में बसे भाई को सौंपकर भांडारीडुबिकी और वापस आ रहे थे तो उनकी खवर मिली की उनके माँ सरल बीमार है। भांडारीडुबि में बहन उर्वशी और बहनोई रामदास के पास रहनेवाली अपनी विधवा माँ के स्वास्थ्य के लिए मनौती मानकर एक सफेद बकरों का जीड़ा भेंट करने का अंगीकार किया। बहनोई के घर पहुँचने पर उन्होंने देखा कि देवी गोसानी की कृपा से उनकी माँ स्वस्थ होने लगी थीं।
यह देखकर वह मन ही मन देवी माता की प्रणाम करके उनके प्रति भक्ति सहित आभारी प्रकट की। कुछ ही दिनों में उसकी माँ पूरी तरह स्वस्थ हो गई और माधवदेव मनौती के अनुसार देवी गोसानी की चड़ानेवाली सफेद बकरों का एक जोड़ा खरीद रखने के लिए उन्होंने बहनोई रामदास को अनुरोध किया। ऐसी ही महान थी माधवदेव की मातृभक्ति।
(ख) बलि हेतु बकरे खरीदने को लेकर रामदास और माधवदेव के बीच हुई बातचीत को अपने शब्दों में प्रस्तुत करो। (बोलि होनो थाखाय बोरमा बायनायनिफ्राय लानानै रामदास आरो माधवदेवनि गेजेराव जानाय बाथ्रा रायज्लायनायखौ गावनि रावजों बेखेवना हो।)
उत्तर : देवी पूजा के दिन एकदम निकट आने पर जब माधवदेव ने बलि हेतु, बकरे खरीदने के लिए बहनोई रामदास को कहा। रामदास रोज बात की ढाल देते थे। एक दिन माधव क्रोधित होकर रामदास से बकरी न खरीदने का कारण पूछा तो वह माधवदेव को समझाने लगा कि- बलि चढ़ाना विनाशकारी कार्य है। उससे कुछ भी प्राप्ति नहीं होता। बेकार में दूसरी जीव का हत्या करना पाप है। और तो जो इस लोक में बकरा काटना है, वह उस लोक में बकरे के हाथों काटा जाता है।
लेकिन माधवदेव, रामदास की बातों से जरा भी प्रभावित नहीं हुए वरञ्च उनका ज्ञा-दंभ जाग उठा और वह बड़ी दृढ़ता से बहनोई की बात इनकार करती बोला कि उसके द्वारा की मिली धर्मशास्त्रों का अध्ययन में उसकी बलि-विधान करने का निर्देश मिला है। समझाकर जाब रामदास माधवदेव से ठक चुके थे तो वह उसकी गुरु शंकरदेव के पास ले आया शास्त्रार्थ करने के लिए।
(ग) रामदास और माधवदेव गुरु शंकरदेव के पास कब और क्यों गए थे? (रामदास आरो माधवदेबा गुरु शंकरदेवनि सेराव माब्ला आरो मानो थांदोंमोन?)
उत्तर : रामदास जब माधवदेव को बलि-बिधान के बिरोध में समझा रहा था तो माधवदेब उस बातों पर जरा भी प्रभावित नहीं हुआ बल्कि उनका ज्ञान दंभ जाग उठा। माधवदेव के ज्ञान-दंभ से रामदास थोड़ा आहत हुआ और उसके आँखे खोलने के लिए श्रीशंकरदेव का पास लाने का निर्णय करता है। और इस तरह रामदास और माधवदेव गुरु शंकरदेव के पास गए थे।
(घ) शंकरदेव और माधवदेव के बीच किस बात पर शास्त्रार्थ हुआ था? उसका क्या परिणाम निकला? (शंकरदेव आरो माधवदेवनि गेजेराव मा बाथ्रानि थाखाय शास्त्रनि सायाव सावरायदोंमोन? बिनि फिथाइया मा ओंखारखो?)
उत्तर : शंकरदेव और माधवदेव के बीज बलि-विधान की बात पर शास्त्रार्थ हुआ था। शंकरदेव निवृन्ति मार्ग के पक्ष में और माधवदेव प्रवृत्ति मार्ग के पक्ष में रहकर विभिन्न शास्त्रों से प्रमाण प्रस्तुत करके एक दूसरे की बात ढालने लगी।
उसका परिणाम यह हुआ कि माधवदेव ने कृष्ण-संबंधी ज्ञान भक्ति के दाता श्रीमंत शंकरदेव की गुरु मानकर गदगद चित्त से प्रणाम किया। शंकरदेव ने भी माधवदेव को शिष्य के रुप में स्वीकार करके अपने पूर्णता प्राप्ति का आनन्दोल्लास मनाया और चलकर एक दूसरे के पूरक बने।
(ङ) शंकर-माधव के महामिलन के शुभ परिणाम किन रुपों में निकले? (शंकर-माधवनि गेदेर लोगो मोनालायनायनि गोथार फिथाइया मा महराव नुजायो?)
उत्तर : शंकर-माधव के महामिलन के शुभ परिणाम यह हुआ कि एकशरण नामधर्म का प्रचार-प्रचार तेजी से बढ़ता गया और कृष्ण-भक्ति की धाराएँ जनमन को मिगोती हुई चारों दिशाओं में बहने लगी। माधवदेव ने कृष्ण भक्ति, गुरुभक्ति और एकशरण नाम धर्म के प्रचार-प्रसार कार्य में अपने को पूरी तरह समर्पित में श्री माधवदेव का सहयोग पाने के परचात, श्रीमंत शंकरदेव अधिक उन्मुक्त भाव से साहित्य-सृष्टि, संगीत-रचना आदि के जरिए असमीया भाषा साहित्य-संस्कृति को परिपूष्ट बनाने में समक्ष हुए।
7. प्रसंग सहित व्याख्या करो : (थांखिनाय बादि थार बेखेवनाय लिर 🙂
(क) ‘ऐसी स्थिति में योग्य गुरु शंकर को योग्य शिष्य माधव मिल गए।’ (‘बैबादि थासारियाव योग्य गुरु शंकरा योग्य (गियानि) माधवखौ सोलोंसा महरै मोननो हायो।’)
उत्तर : प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हिन्दी पुस्तक ‘आलोक’ के अंतर्गत पाठ ‘मणिकांचन संयोग’ से ली गई है। इस पाठ का लेखक डा० अच्युत शर्माजी हैं।
इन पंक्तियों में शंकर-माधव के महामिलन के बारे में बताया गया है।
व्याख्या : एकशरण भागवती बैष्णव धर्म के प्रवर्तक श्रीमंत शंकरदेव और परमभक्त माधवदेव का महामिलन मध्ययुगीन असम की एक सर्वाधिक महत्तपूर्ण घटना है। उन दिनों शंकरदेव शक्ति की उपासना, तंत्र-मंत्र, बलि-विधान एवं अनेकानेक कठोर धार्मिक ब्रह्माचारों से जकड़े हुए असमीया समाज को मुक्ति का नया पथ दिखाने तथा उसे आध्यात्मिक उन्नति के सरलतम मार्ग पर ले चलने के महान प्रयास में जुटे हुए थे। ऐसी ही गंभीर परिस्थितियों में गुरु-शिष्य की मिलन ने असम-भूमि में आशा के किरण लेकर आया।
(ख) ‘उसने इस महामिलन के उमंग-रस को बंगाल की खाड़ी से होकर हिंद महासागर तक पहुँचाने के लिए अपनी लोहित जल-धारा को आदेश दिया था।’ (‘बियो बे गेदेमा लोगो मोनलायनाय रंजाथाव बिदैखौ बेंगलनि जानानै हिन्दु लैथोमा सिम सौहैनो थाखाय गावनि बोहैथि-दाहारखौ बिथोन होदोंमोन।’)
उत्तर : प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्त ‘आलोक’ के अंतर्गत पाठ ‘मणि-कांचन संयोग’ से ली गई है। इसके लेखक डा० अच्युत शर्माजी हैं।
इन पंक्तियाँ में लेखक ने शंकर-माधव के महामिलन के विषय पर ब्रह्मपुत्र नद का आनन्दोल्लास के बारे में बताया है।
व्याख्या : एकशरण भागवती वैष्णव धर्म के प्रवर्तक श्रीमंत शंकरदेव और परम शाक्त माधवदेव का महामिलन मध्ययुगी काल में असम-भूमि में घटित एक अत्यन्त महत्वपूर्ण घटना है। ये दोनों महान गुरु के महामिलन से भारतवर्ष के इस पूर्वोत्तरी भूखड़ में भागवती वैष्णव धर्म प्रचार-प्रसार कार्य में एक अदभुत गति आ गई थी।
सांसारिक जीवन में शंकर माधव मामा-भांजे थे, पर इस महामिलन के उपरांत दोनों गुरु-शिष्य के पबित्र बंधन में बंध गए थे। इसका साक्षी बना था ब्रह्मा का वहदपुत्र असम का ब्रह्मपुत्र नद। महा शक्ति का आगार ब्रह्मपुत्र अपनी गोद से मामा-भांजे को गुरु शिष्य बनते देखकर अत्यंत हर्षित हो उठा था और इस महामिलन के खबर पूरे भारतवर्ष में पहुँचाने के लिए अपनी लोहित जलधारा को भेज दिया।
(ग) ‘उत्तर भारतीय समाज में ‘रामचरितमानस’ का आदर जितना है, असमीया समाज में ‘कोर्तनघोषा-नामघोषा’ का भी आदर उतना ही है। (‘सा-भारतारि समाजाव ‘रामचरितमानस ‘खौ जेसेबां अनसायो, असमीया समाजाव’ कीर्तनघोषा-नामघोषा ‘खौबो एसेबांनो अनसायो।’)
उत्तर : प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी पाठ्य-पुस्तक ‘आलोक’ के ‘मणि-कांचन संयोग’ नामक पाठ से ली गई है। इसके लेखक हैं डाँ० अच्युत शर्माजी।
इन पंक्तियों में शंकर माधव के महामिलन के विषय पर ब्रह्मपुत्र नद का, आनन्दोल्लास के बारे में बताया गया है।
व्याख्या : असमीया जाति शंकरगुरु और माधवगुरु दोनों की आभा से उटभाषित है। दोनों गुरु की साहित्यिक जीवन की अमुल्य कृति कीर्तनघोषा और नामघोषा असमीया जाति का अनमोल सम्पद है। दो के दो पुस्तके असमीया संस्कृति के मार्ग दर्शक के रुप में आगे चलकर हम लोगों को आध्यात्मिक उन्नति के सरलतम मार्ग पर ले चलने हैं। इसी से हम लोगों दानों गुरु की उपस्थिति महसूस करते हैं। जिस तरह रामचरितमानस उत्तरी भारतीय समाज के लोगों के लिए पथ प्रदर्शक है। तुलसीदास रचित रामचरितमानस उत्तरी संस्कृति की आध्यात्मिक मार्ग दर्शक है। इसलिए यह रामचरित मानस का स्थान कीर्तनघोषा-नामघोषा को दी जाती है।
भाषा एवं व्याकरण ज्ञान : (सव आरो रावखान्थिनि गियान 🙂
(क) ‘निम्नलिखित अभिव्यक्तियों के लिए एक-एक शब्द दो : (‘गाहायाव होनाय सुबुंथिफोरनि थाखाय मोनसे सोदोबजों फोरमाय।’)
विष्णु का उपासक, शक्ति का उपासक, शिव का उपासक, जिसकी कोई तुलना न हो, संस्कृति से संबंधित, बहन के पति, जिस स्त्री का पति मर गया हो, ऐसा व्यक्ति, जो शास्त्र जानता हो।
उत्तर : 1. विष्णु का उपासक – वैष्णव।
2. शक्ति का उपासक – शाक्त।
3. शिव का उपासक – शैविक।
4. जिसकी कोई तुलना न हो – अतुलनीय।
5. संस्कृतिक से संबंधित – सांस्कृतिक।
6. बहन के पति – बहनोई।
7. जिस स्त्री का पति मर गया हो – बिधवा।
8. ऐसा व्यक्ति, जो शास्त्र जानता हो – शास्त्रग्य।
(ख) ‘निम्नांकित शब्दों से प्रत्ययों को अलग करो : (गाहायाव होनाय सोदोबफोरनिफ्राय उन दाजाबदाखौ आलादा खालाम 🙂
मनौती, वार्षिक, कदाचित, बुढ़ापा, चचेरा, पूर्वोत्तरी, आध्यात्मिक, आधारित।
उत्तर : 1. मनौती = औती
2. वार्षिक = इक।
3. कदाचित = इत।
4. बुढ़ापा = पा।
5. पूर्वोत्तरी = ई।
6. आध्यात्मिक = इक।
7. आधारित = इत।
(ग) निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग वाक्य में इस प्रकार करो, ताकि उनका लिंग स्पष्ट हो : (‘गाहायाव होनाय सोदोबफोरखौ एरैबादि बाथ्रायाव बाहाय, जाहाथे बिनि आथोना रोखा जायो’)
महामिलन, उपासना, बढ़ोत्तरी, मोल-भाव, विनती, वाणी, तिरोभाव, संस्कृति
उत्तर : (1) महामिलन : प्राचीन काल से भारतवर्ष को विभिन्न जातियों के महामिलन का तीर्थ माना जाता है।
(2) उपासना : विष्णु की उपासना करने से सब देव-देवी संतुष्ट हो जाती है।
(3) बढ़ोत्तरी : हमलोगों की अपने देश की बढ़त्तरी के लिए सहायता करनी चाहिए।
(4) मोल-भाव : मोल-भाव करते समय ग्राहक की सचेत रहना चाहिए।
(5) विनती : महाराज से दीवान साहव ने एक विनती की थी।
(6) वाणी : गुरु शंकरदेव की अमृतोपम वाण सुनकर माधवदेव आह्लादित हो उठे थे।
(7) तिरोभाव : सन 1568 ई. के भाद्र महीने में शंकर गुरु के तिरोभाव के पश्चात् माधवदेव ने धर्म गुरु का गुरु-भार संभाला।
(8) संस्कृति : वैष्णव-गुरु श्रीमंत शंकरदेव और शाक्त-माधवदेव का महामिलन असम के सांस्कृतिक इतिहास की कदाचित सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना है।
Chapter No. | CONTENTS |
Unit 1 | गद्य खंड |
खोन्दो – 1 | हिम्मत और जिंदगी |
खोन्दो – 2 | आनजाद (परीक्षा) |
खोन्दो – 3 | बिन्दो–बिन्दो बिजिरनाय (बिदुं–बिदुं विचार) |
खोन्दो – 4 | दावनि फिसाजो (चिड़िया की बच्ची) |
खोन्दो – 5 | नों मोजांब्लानो मुलुगा मोजां (आप भले तो जग भला) |
खोन्दो – 6 | चिकित्सा का चक्कर (फाहामथाइनि नायगिदिंनाय) |
खोन्दो – 7 | जेननो रोङै (अपराजिता) |
खोन्दो – 8 | सना-मुकुटानि सोमोन्दो (मणि-कांचन संयोग) |
Unit 2 | पद्य खंड |
खोन्दो – 9 | कृष्णानि फाव (कृष्ण महिमा) |
खोन्दो – 10 | मोनजि खन्थाइ खोन्दों (दोहा-दशक) |
खोन्दो – 11 | मानसि जा, गोसोखौ लोरबां दा खालाम (नर हो, न निराश करो मन को) |
खोन्दो – 12 | लरहायनाय बिबार (मुरझाया फूल) |
खोन्दो – 13 | गामिनिफ्राय नोगोर फारसे (गाँव से शहर की ओर) |
खोन्दो – 14 | सावरमतीनि सादु (साबरमती के संत) |
खोन्दो – 15 | थांबाय था (चरैवति) |
खोन्दो – 16 | बायग्रेबनाय साखा (टुटा पहिया) |
Notes of Class 9 Hindi in Bodo Medium | Bodomedium Class 9 Hindi notes इस पोस्ट में हम आपको ये समझा ने कि कोशिश की है की Bodo Medium 9th class hindi Question answer | Class 9 hindi seba in Bodo अगर आप एक bodo सात्र या शिक्षाक हो तो आपके लिए लावदयक हो सकता है।