Class 9 Hindi Notes Chapter 10 in Bodo दोहा-दशक (मोनजि खन्थाइ खोन्दों)

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Class 9 Hindi Notes Chapter 10 in Bodo दोहा-दशक (मोनजि खन्थाइ खोन्दों)

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खोन्दो 10 दोहा-दशक (मोनजि खन्थाइ खोन्दों)

Chapter 10 Deha-Doshok/Monji Khanthai Khondo

बोध एवं विचार (बुजि आरो बिजिर)

1. सही विकल्प का चयन करो : (थार फिननायखौ सायख 🙂 

(क) कवि बिहारीलाल किस काल के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं? (खन्थाइगिरि बिहारीलालखौ माबे समनि साबसिन खन्थाइगिरि मानिनाय जायो?) 

(1) आदिकाल के।

(2) रोतिकाल के।

(3) भक्तिकाल के।

(4) आधुनिक काल के।

उत्तर : (2) रोतिकाल के।

(ख) कविवर बिहारी की काव्य-प्रतिभा से प्रसन्न होनेवाले मुगल सम्राट थे। (खन्थाइगिरि बिहारीनि खन्थाइनि बिहोमाजों गोजोन मोन्नाय मुगल राजायामोन 🙂

(1) औरंगजेब।

(2) अकबर।

(3) शाहजहाँ।

(4) जहाँगीर।

उत्तर : (3) शाहजहाँ।

(ग) कवि बिहारी का देहावसान कब हुआ? (खन्थाइगिरि बिहारीनि जीउ नागारनाया माब्ला जायो?)

(1) 1645 ई. को।

(2) 1660 ई. को।

(3) 1662 ईं को।

(4) 1663 ईं को।

उत्तर : (4) 1663 ईं को।

(घ) श्रीकृष्ण के सिर पर क्या शोभित है? (श्रीकृष्णनि खर’ सायाव मा खानाय दंमोन?)

(1) मुकुट।

(2) पगड़ी

(3) टोपी।

(4) चोटी।

उत्तर : (1) मुकुट।

(ङ) कवि बिहारी ने किन्हें सदा साथ रहनेवाली संपत्ति माना है? (खन्थाइगिरि बिहारीया सोरखौ जेब्लाबो गावजों लोगोसे थाफाग्रा धोन होन्नानै गनायो।)

(1) राधा को।

(2) श्रीराम को।

(3) यदुपति कृष्ण को। 

(4) लक्ष्मी को।

उत्तर : (3) यदुपति कृष्ण को।

2. निम्नलिखित कथन शुद्ध हैं या अशुद्ध, बताओ : (गाहायाव होनाय बाथ्राफोरा गेबें नंगौ ना नङा, फोरमाय 🙂 

(क) हिन्दी के समस्त कवियों में भी बिहारीलाल अग्रिम पंक्ति के अधिकारी हैं। (हिन्दी थुनलाइनि गासैबो खन्थाइगिरिफोरनि गेजेराव बिहारीलाला सिगां सारिनि खन्थाइगिरि होन्ना सिनायथि जायो।)

उत्तर : शुद्ध।

(ख) कवि बिहारी को संस्कृत और प्राकृत के प्रसिद्ध काव्य ग्रन्थों के अध्ययन का अवसर प्राप्त नहीं हुआ था। (खन्थाइगिरि बिहारीया संस्कृत आरो प्राकृत रावनि मखजाथाव खन्थाइ बिजाबफोरखौ सोलोंनो खाबु मोनाखैमोन।)

उत्तर : शुद्ध।

(ग) 1645 ई. के आस-पास कवि बिहारी वृत्ति लेने जयपुर पहुँचे थे। (1645 इं. नि खाथि-खाला समाव खन्थाइगिरि बिहारीया वृत्ति लानो जयपुराव थांदोंमोन।) 

उत्तर : शुद्ध।

(घ) कवि बिहारी के अनुसार ओछा व्यक्ति भी बड़ा बन सकता है। (खन्थाइगिरि बिहारीनि बादिब्ला फिसा मानसियाबो माब्लाबा गेदेर जानो हायो।)

उत्तर : अशुद्ध।

(ङ) कवि बिहारी का कहना है कि दुर्दशाग्रस्त होने पर भी धन का संचय करते रहना कोई नीति नहीं है। (खन्थाइगिरि बिहारीनि बादिब्ला खैफोदनि समावबो दोहोनखौ दोनथुमबाय थानांगौनि जेबो नेमखान्थि गैया।)

उत्तर : शुद्ध।’

3. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो : (आबुं बाथ्राजों फिन हो 🙂

(क) कवि बिहारी ने मुख्य रुप से कैसे दोहों की रचना की है? (खन्थाइगिरि बिहारीया गुबै महरै माबादि खन्थाइ खोन्दोखौ रनसायो?) 

उत्तर : कवि बिहारी ने मुख्य रुप से शृंगार, भक्ति तथा नीतिपरक दोहों को रचना की है।

(ख) कविवर बिहारी किनके आग्रह पर जयपुर में ही रुक गए? (खन्थाइगिरि बिहारीया सोरनि खावलायनायाव जयपुरावनो थाद ‘यो?) 

उत्तर : महाराज जयसिंह और चौहानी रानी के आग्रह पर कवि बिहारी जयपुर में ही रुक गए।

(ग) कवि बिहारी की ख्याति का एकमात्र आधार-ग्रंथ किस नाम से प्रसिद्ध है? (खन्थाइगिरि बिहारीनि गांसेल’ रनसायजानाय बिजाबा मा मुङै मुंदांखा?)

उत्तर : ‘बिहारी सतसई’ के नाम से प्रसिद्ध है।

(घ) किसमें किससे सौ गुनी अधिक मादकता होती है? (बबेयाव बबेनिखुरै जौसे गुननिबो बांसिन फाग्ल जाहोनाय गुन (गोहो) दं?)

उत्तर : धतुरा से सोना (कनक) में मादकता होती है।

(ङ) कवि ने गोपीनाथ कृष्ण से क्या-क्या न गिनने की प्रार्थना की है? (खन्थाइगिरिया गपिनाथ कृष्णनिफ्राय मा-मा गनना खालामनो होआखै।)

उत्तर : कवि ने कृष्ण से गुण-अवगुण न गिनने की प्रार्थना की है। 

4. अति संक्षेप्त में उत्तर दो : (जोबोद गुसुङै फिन हो 🙂

(क) किस परिस्थिति में कविवर बिहारी काव्य-रचना के लिए जयपुर में रुक गए थे? (मा थासारियाव खन्थाइगिरि बिहारीया खन्थाइ रनसायनायनि थाखाय जयपुरावनो थाबथाहैदोंमोन?)

उत्तर : कविवर बिहारी जयपुर में प्रत्येक दोहे के लिए एक अशर्फी की शर्त पर, क्व्य-रचना करने लगे।

(ख) ‘यहि बानक मो मन बसौ, सदा बिहारीलाल’-का भाव क्या है? (बेबादि महरखौनो जेब्लाबो बिहारीलालनि गोसोआव जाखांफैबाय थायो ― नि सानस्रिया मा?)

उत्तर : कवि कहते हैं कि कृष्ण सिर पर मुकुट तथा कमर में कछनी पहने हैं। हाथों में मुरली तथा गले में माला पहने हैं। कृष्ण की यह छवि कवि के मन में बसा हैं हुआ है।

(ग) ‘ज्यों-ज्यों बूड़ै स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जलु होई’ –का आशय स्पष्ट करो। (‘जेसेबां-गोबां कृष्णखौ सिबिनायाव गोदोहाबो एसेबांनो-बांसिनै गोथार ‘जासिनो’ नि ओंथिखौ रोखा खालाम।)

उत्तर : कवि कहते हैं कि कृष्ण-भक्ति ज्यों-ज्यों कृष्ण की भक्ति में मन डुब जाता है, त्यों-त्यों मन उज्जल हो जाता है।

(घ) ‘आँटे पर प्रानन हरै, काँटे लौं लगि पाय’ –के जरिए कवि क्या कहना चाहते है? (खाबु मोनोब्ला जिउखौबो फोजोबस्राङो, बिसोर सु बादि आथिङाव हाबनानै दुखु होयोनि गेजेरजों खन्थाइगिरिया मा बुंनो नागिरो?) 

उत्तर : कवि ने इसके जरिए यह कहना चाहते हैं कि दुष्ट लोग के स्वभाव देखकर कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि अवसर मिलने पर वे प्राणों का हरण भी कर सकते हैं। वे काँटें की तरह होते हैं, जो पैरों में चुभ सकते हैं। 

(ङ) ‘मन काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै राम’ –का तात्पर्य बताओ। (गोसोआ सनसल (उरां-फारां) जायोब्ला जेबो मोना, थार गोसोजोंसो गस्वाय रामखौ मोननो हायो – नि ओंथिखौ फोरमाय।)

उत्तर : जपमाला, जपने के नाम भक्ति नहीं, उसी से सिद्धि नहीं मिलता। वह सिर्फ दिखावट है। जीवन निर्वाह के लिए काम भी करना पड़ता है। पवित्र में से करना काम ही सच्चा राम भक्ति है।

5. संक्षेप्त में उत्तर दो : (सुंदयै फिन हो 🙂

(क) कवि के अनुसार अनुरागी चित्त का स्वभाव कैसा होता है? (खन्थाइगिरिनि बादिब्ला मोजां मोनहाबनाय गोसोनि आखला माबादि जायो?)

उत्तर : कवि के अनुसार अनुरागी चित्त का स्वभाव कोई नहीं जानता है। क्योंकि ज्यों-ज्यों मन कृष्ण भक्ति में रमने लगता है, त्यों-त्यों वह उज्जल होना है। 

(ख) सज्जन का स्नेह कैसा होता है? (बाहागिनि अनसायनाया मा बादि जायो?)

उत्तर : सज्जन का स्नेह गमईर घटते हुए भी अर्थात् निर्धन-निर्बल होते हुए भी अपनी चटक नहीं छोड़ता, जैसे चोल के रंगों से रंगा हुआ कपड़ा फीका नही पड़ता याहे फट भले ही जाए।

(ग) धन के संचय के संदर्भ में कवि ने कौन सा उपदेश दिया है? (धोन दोनथुमनायनि बागै खन्थाइगिरिआ मा दिशा होदों?) 

उत्तर : धन के संचय के संदर्भ में कवि ने यह उपदेश दिया है कि खाने और खरच करने के बाद जो शेष रह जाते हैं उसे संचय करने पर करोरपति बन जाएँगा।

(घ) दुर्जन के स्वभाव के बारे में कवि ने क्या कहा है? (गाज्रि आखलनि मानसिनि सोमोन्दै खन्थाइगिरिया मा बुङो?) 

उत्तर : कवि कहते हैं कि दुर्जन के स्वभाव को देखकर हमें कभी विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि अवसर पाते ही वे प्राण भी हरण कर सकते थे। वे काँटे की तरह होते हैं, जो पैरों में चुभ सकते हैं।

(ङ) कवि बिहारी किस वेष में अपने आराध्य कृष्ण को मन में बसा लेना चाहते है? (खन्थाइगिरि बिहारीआ मा खसाबाव गावनि सिबिग्रा कृष्णखौ गोसो सिङाव लानो नांगिरदों?)

उत्तर : सिर पर मोर मुकुट, कटि में काछनी, कर में मुरली एवं उर में बनमाला, इस वेष में कवि बिहारी अपने आराध्य कृष्ण को मन में बसा लेना चाहते हैं।

(च) अपने उद्धार के प्रसंग में कवि गोपीनाथ कृष्णाजी से क्या निवेदन किया है? (गावखौ दैखांनायनि बागै खन्थाइगिरिया गपिनाथ कृष्णनियाव मा आर ज खलामदों?) 

उत्तर : कवि बिहारीलाल श्रीकृष्ण से अपनी उद्धार के प्रसंग में प्रार्थना करते है कि वे पापी लोगो के साथ है, उसके अवगुणो विचार न करे। वे श्रीकृष्ण के शरण में आना चाहते है।

(छ) कवि बिहारी की लोकप्रियता पर एक संक्षिप्त टिप्पजी प्रस्तुत करो। (खन्थाइगिरि बिहारीखौ मोजां मोननायनि सायाव मोनसे गुसुं लिरसुंथाय लिर।)

उत्तर : कवि बिहारीलाल हिन्दी साहित्य के अन्तर्गत रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि उन्होंने माने जाते हैं। हिन्दी के समस्त कवियों में भी आप अग्रिम पंक्ति के अधिकारी हैं। उन्होंने प्रमुख रूप से प्रेम गार और गौण रुप से भक्ति एवं नीति के दोहो को रचना करके आपार लोकप्रियता प्राप्त की थी। उनकी यह लोकप्रियता आज भी बनी हुई और आगे भी बनी रहेगी।

6. सम्यक उत्तर दो : (आबुङै फिन हो 🙂

(क) कवि बिहारी का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय दो। (खन्थाइगिरि बिहारीनि सुंदयै थुनलाइगिरिनि सिनायथि हो) 

उत्तर : कविवर बिहारीलाल रीतिकाल के सर्वश्रेष्ट कवि माने जाते हैं। उनकी ख्याति का आधार बिहारी सतसई नामक एकमात्र ग्रंथ है। आपने प्रमुख रुप से प्रेम-शृंगार, भक्ति और नीति की त्रिवेणी भी कहते हैं। इस ग्रंथ की लोकप्रियता के बारे में युरोपीय विद्वान डा० ग्रियर्सन ने कहा है कि युरोप में इसके समान कोई रचना नहीं है। 

विहारी सतसई लगभग सात सौ दोहों का एक अनुपम ग्रंथ है। गागर में सागर भरने के समान कविवर बिहारी ने दोहे जैसे छोटे से छन्द में लम्बी चौड़ी, बात, को भी संक्षेप में कह दी है। सरस, सुमधुर और प्रौढ़ ब्रजभाषा में रचित ये दोहे काव्य रसिकों को अत्यन्त प्रिय रहे हैं।

(ख) ‘बिहारी सतसई’ पर एक टिम्पणी लिखो। (‘बिहारी सतसई’ नि सायाव मोनसे लिरसुंथाय लिर) 

उत्तर : बिहारी सतसई : बिहारी की एकमात्र कृति है, जो ‘बिहारी सतसई’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह लगभग सात सौ दोहों का अनुपम संग्रह है। इसे ऋंगार, भक्ति और नीति को त्रिवेणी भी कहते हैं। इस ग्रन्थ की लोकप्रियता के संदर्भ में युरोपीय विद्वान डा॰ ग्रियर्सन ने कहा है, कि युरोप में इसके समकक्ष कोई रचना नहीं है।

(ग) कवि बिहारी ने अपने भक्तिपरक दोहों के माध्यम से क्या कहा है? पठित दोहों के आधार पर, स्पष्ट करो। (खन्थाइगिरि बिहारीया गावनि आरज खन्थाइनि गेजेरजों मा फोरमायदों? फरानि खन्थाइ लारिनि गेजेरजों रोखा खालाम।)

उत्तर : कवि ने कृष्ण के सौन्दर्य रुप का वर्णन किया है। वह कहते हैं कि सिर पर, मुकुट, कमर में काछनी, हाथों में मुरली तथा गले में माला वाला रुप उनके मन में बस गया है। वह कहता है कि उनका अनुरागी मन जैसे-जैसे स्याम या भक्ति रंग में डुबता जाता है, वैसे-वैसे वह उज्जल होता है। कवि कहता है, जपमाला जपने के नाम भक्ति नहीं उसी से सिद्धि नहीं मिलता। वह सिर्फ दिखावट है। जीवन निर्वाह के लिए काम भी करना पड़ता है। पवित्र मन से काम करना ही सच्चा रामभक्ति है।

(घ) पठित दोहों के आधार पर बताओ कि कवि बिहारी के नीतिपरक दोहों का प्रतिपाध क्या है? (फरानि खन्थाइसारियाव थानाय खन्थाइगिरि बिहारीनि नेमखान्थिनि ओंथिखौ गुवारै सावराय।)

उत्तर : कवि बिहारी ने अपने नीतिपदक दोहों के माध्यम से यह बाते की है कि सज्जन का गम्भीर स्नेह घटते हुए भी अर्थात् निर्धन-निर्बल होते हुए भी अपनी चटक नहीं छोड़ता, जैसे चोल के रंगी हुआ कपड़ा फीका नहीं पड़ता चाहे फट भले ही जाय। यह नम्र होकर देखकर विश्वास होते है कि पापी को जो सोभाते है। मादकता मे कनक-कनक सें सो गुना बढ़ जाता है, क्योंकि उनको खाने से मनुष्य पागल होता है, पर इसको पाने के लिए।

7. सप्रसंग व्याख्या करो : (गुदि खोथाजों बेखेवना लिर 🙂 

(क) ‘कोऊ कोरिक संग्रहो ……..विपत्ति बिदारनहार ॥’

उत्तर : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी पाठ्य-पुस्तक ‘आलोक’ भाग-1 से ली गयी है। इस दोहे का लेखक है बिहारीलाल।

यहाँ कवि के भक्त हृदय को दर्शाया गया है। इसका यह आशय है कि कोई करोड़ों धन जमा करते हैं, लेकिन मेरे पास वह धन नहीं है। मेरे लिए कृष्ण ही परम धन है। विपत्ति में वे ही मुझे उद्धार करेंगे।

इस पंक्यियाँ में यह कहा है कि मनुष्य कोई करोड़, कोई लाख और कोई हजार रुपया संग्रह करके भगवान को नहीं खरीद पाते हैं। मनुष्य के संचय करा हुआ रुपया से कुछ लाभ नहीं होता। कवि के सोच में ये रुपया पैसा का कोई मुल्य नहीं है। कवि के सारा सम्पत्ति है भगवान श्रीकृष्णजी हैं। वे लाखों-करोड़ों से बहुत ज्यादा है। ये कृष्ण भगवान ने ही सब विपद कष्ट से बचाटे या उदधार करते हैं।

(ख) जय-माला, छापै तिलक… साँचै राँयै रामु।

उत्तर : यह पंक्तियाँ हमारे पाठ्य-पुस्तक के आधार पर लिखें गये दोहा दशक नाम के भक्तिपदक दोहें से लिया गया है। इस दोहें का कवि है बिहारीलाल। यहाँ कवि ने श्रीकृष्ण जी की दर्शन और भक्ति के लिए ये बातें लिखा है।

यहाँ कविने कहा है कि – हाथों में जपमाला कँपाल में तिलक लेकर कोई लाभ नहीं होता है। इससे कोई सिद्धि लाभ नहीं होता है। मन में खराव अर्थात् पापी भाव लेकर श्रीकृष्णजी के नाम लेने से कृपा नहीं मिलेगा, ऐसा मित्था अभिनय से जीवन बृथा जाते है। श्रीकृष्णजी नहीं मिलते हैं इसी काम से। इसलिए कवि ने कहते है भगवान को मिलने के लिए सच्चा मन से बुलाना चाहिए। झुठा मन से बूलाने से भगवान का कृपा नही मिलेगा। यहाँ यह कहा है।

(ग) कनक कनक तैं सौ गुनी ……. इहिं पाएँ बौराइ।

उत्तर : यह पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक के आधार पर लिखे गये दोहा दशक नाम के नीतिपरक दोहे से लिया गया है। इस दोहे का कवि है बिहारीलाल। यहाँ श्रीकृष्ण तरह प्रार्थना करना चाहिए, इसके बारे में कहा है। इस पंक्तियाँ में यह कहा है कि – मादकता अर्थात् नशे में सोने से धतुरे के सौ गुना दाम बढ़ जाता है। क्योंकि उनको खाने से मनुष्य पागल हो जाता है। फिर भी मनुष्य जब बुझ कर इसकों खाने के लिए दौड़ा जाता है। आदमी जानते है इस धतुरे खाने हमलोगों के नुकसान होते है तो भी नशेवाले लोग इसके लिए पागल हो जाते हैं और इसकी ज्यादा मुल्य देते हैं। यहाँ कविने यह कहा है। 

(घ) ओछे बड़े न है सकैं …….. फारि निहारै नैन। 

उत्तर : यह पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक के आधार पर दोहा दशक नाम के दोहा से लिया गया है। इस दोहे का लेखक है बिहारीलाल। ये बिहारीलालजी के नीतिपरक दोहें से लिया गया है।

इस पंक्तियाँ में यह कहा है कि निकृष्ट ब्यक्ति या छोटा व्यक्ति बड़ा नही हो सकते हैं। जितना आकाश चुमनेवाला ऊँचा न हो जायें। वे लोग जितना धन-सम्पत्ति का मालिक न हो, लेकिन भगवान को पाने के लिए सच्चे मन से बुलाना चाहिए। आपके मन में भगवान के लिए कोइ भक्ति या प्रेम भाव नहीं होता, तब आँखो फारकर आँसु बहाने से कोइ काम नहीं होता अर्थात् भगवान को नही मिलता। यहाँ कविने यह कहा हैं।

भाषा एवं व्याकरण ज्ञान (राव आरो रावखान्थिनि गियान)

(क) संधि विच्छेद करो (संधि सोदोबखौ सिफाय)

देहावसान, लोकोक्ति, उज्जल, सज्जन, दुर्जन। 

उत्तर : लोकोक्ति  = लोक + उक्ति।

सज्जन = सन् + जन।

दुर्जन = दु: + जन।

उज्ज्वल = उत् + ज्वल।

देहावसान = देह + अवसान।

(ख) विलोप शब्द लिखो (उलथा सोदोब लिर 🙂

अनुराग, पाप, गुण, प्रेम, सज्जन, मित्र, गगन, श्रेष्ठ

उत्तर : अनुराग – विराग।

पाप – पुण्य।

गुण – अवगुण।

प्रेम – घृणा।

सज्जन – दुर्जन।

मित्र – शत्रु।

गगन – धरती।

श्रेष्ठ – निकृष्ठ।

(ग) निम्नलिखित दोहों को खड़ीबोली (मानक हिन्दी) गद्य में लिखो। (गाहायाव होनाय खन्थाइ सिरिफोरखौ सरासनस्रा रायज्लायनाय रायथाइनि रावाव लिर।)

मीत न नीत गलीत हवै, जो धरियै धन जोरि। 

खाए खरचैं जो जुरै, तौ जरिए करोरि ॥

न ए बिससिये लखि नये, दुर्जन दुसह सुभाय। 

ऑटे पर प्रानन हरै, काँटे लौं लगि पाय ॥

उत्तर : कवि कहते हैं कि दुर्दर्शाग्रस्ट होने पर भी धन संचय करना नीति नहीं है। बल्कि खाने-पीने के बाद जो संचय किया जाता है, वहीं वास्तविक संचय होता है।

कवि कहते हैं कि कभी भी दुर्जन व्यक्तियों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि अवसर आने पर वे प्राण भी हरण कर सकते हैं। जिस प्रकार काँटा पैरों में चुभकर दर्द पैदा करता है।

(घ) निम्न लिखित समस्त पदों का विग्रह करके समास का नाम बताओ : (गाहायाव होनाय गासैबो पदखौ सिफायनायना समासनि मुंखौ फोरमाय 🙂

सतसई, गोपीनाथ, गुन-औगुन, काव्य-रसिक, आजीवन

उत्तर : सतसई सातसौ का समाहार-ब्दिगु समास गोपीनाथ-गोपी के नाथ-तत्पुरुष समास गुन-औगुन-गुण और अवगुण-व्दन्द समास-काव्य, रसिक काव्य, प्रेमिक काव्य, तत्पुरुष समास आजीवन-जीवनभर-अव्ययी भाव समास। 

(ङ) अंतर बनाए रखते हुए निम्नलिखित शब्द जोरों के अर्थ बताओ : (फाराग दिन्थिनानै गाहायाव होनाय सोदोबफोरनि ओंथिखौ फोरमाय 🙂

कनक-कनक, हार-हार, स्नेह-स्नेह, हल-हल, कल-कल 

उत्तर : कनक- सोना।

कनक- धतुरा।

हार- माला।

हार- पराजय।

स्नेह- प्रेम।

स्नेह- सुन्दर।

हल- शुध्द व्यंजन।

हल- खेत जोतने का औजार।

कल-आने वाल दिन।

कल- नल।

Chapter No.CONTENTS
Unit 1गद्य खंड
खोन्दो – 1हिम्मत और जिंदगी
खोन्दो – 2आनजाद (परीक्षा)
खोन्दो – 3बिन्दो–बिन्दो बिजिरनाय (बिदुं–बिदुं विचार)
खोन्दो – 4दावनि फिसाजो (चिड़िया की बच्ची)
खोन्दो – 5नों मोजांब्लानो मुलुगा मोजां (आप भले तो जग भला)
खोन्दो – 6चिकित्सा का चक्कर (फाहामथाइनि नायगिदिंनाय)
खोन्दो – 7जेननो रोङै (अपराजिता)
खोन्दो – 8सना-मुकुटानि सोमोन्दो (मणि-कांचन संयोग)
Unit 2पद्य खंड
खोन्दो – 9कृष्णानि फाव (कृष्ण महिमा)
खोन्दो – 10मोनजि खन्थाइ खोन्दों (दोहा-दशक)
खोन्दो – 11मानसि जा, गोसोखौ लोरबां दा खालाम (नर हो, न निराश करो मन को)
खोन्दो – 12लरहायनाय बिबार (मुरझाया फूल)
खोन्दो – 13गामिनिफ्राय नोगोर फारसे (गाँव से शहर की ओर)
खोन्दो – 14सावरमतीनि सादु (साबरमती के संत)
खोन्दो – 15थांबाय था (चरैवति)
खोन्दो – 16बायग्रेबनाय साखा (टुटा पहिया)

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Note- यदि आपको इस Chapter मे कुछ भी गलतीया मिले तो हामे बताये या खुद सुधार कर पढे धन्यवाद

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